अिस रामको अपने पास रखनेके लिअे या अपने-आपको रामके पास रखनेके लिअे वह पच महाभूतोकी मदद लेकर सन्तोष मानेगा। यानी वह मिट्टी, हवा, पानी, सूरजकी रोशनी और आकाशका सहज, साफ और व्यवस्थित तरीकेसे अिस्तेमाल कर के जो पा सकेगा अुसमे सन्तोष मानेगा। यह उपयोग रामनामका पूरक नही, पर रामनामकी साधनाकी निशानी है। रामनामको इन मददगारो की ज़रूरत नहीं। लेकिन इसके बदले जो अेकके बाद दूसरे वैद्य-हकीमोके पीछे दौड़े और रामनामका दावा करे, अुसकी बात कुछ जचती नहीं।
अेक ज्ञानीने तो मेरी बात पढ़कर यह लिखा है कि रामनाम अैसा कीमिया है, जो शरीरको बदल डालता है। वीर्यको अिकट्ठा करना दबा कर रखे हुई धनके समान है। उसमें से अमोघ शक्ति पैदा करनेवाला तो रामनाम ही है। खाली सग्रह करनेसे तो घबराहट होती है। किसी भी समय उसका पतन हो सकता है। लेकिन जब रामनामके स्पर्शसे वह वीर्य गतिमान होता है, अूर्घ्वगामी (ऊपर जानेवाला) बनता है, तब उसका पतन नामुमकिन हो जाता है।
शरीरके पोषणके लिए शुद्ध खून ज़रूरी है। आत्माके पोषणके लिए शुद्ध वीर्यशक्तिकी ज़रूरत है। इसे दिव्य शक्ति कह सकते है। यह शक्ति सारी इन्द्रियोकी शिथिलताको मिटा सकती है। इसीलिए कहा है कि रामनाम हृदयमें बैठ जाय, तो नयी जिन्दगी शुरू होती है। यह कानून जवान, बूढ़े, मर्द, औरत सबको लागू होता है।
पश्चिम में भी यह खयाल पाया जाता है। किश्चियन-सायन्स नामका सम्प्रदाय बिलकुल यही नहीं, तो करीब-करीब इसी तरहकी बात कहता है। लेकिन मैं मानता हूँ कि हिन्दुस्तानको अैसे सहारेकी ज़रूरत नहीं, क्योंकि हिन्दुस्तानमें तो यह दिव्य विद्या पुराने जमानेसे चली आ रही है।
हरिजनसेवक, २९-६-१९४७