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सच्ची रोशनी
मुझे अफसोस है कि आज हिन्दुस्तान में रामराज्य नहीं है। अिसलिअे हम दिवाली कैसे मना सकते है? वही आदमी इस विजयकी खुशी मना सकता है, जिसके दिल में राम है। क्योंकि भगवान ही हमारी आत्मा को रोशनी दे सकता है, और अैसी ही रोशनी सच्ची रोशनी है। आज जो भजन गाया गया, अुसमें कवि की भगवान को देखने की अिच्छा पर जोर दिया गया है। लोगों की भीड दिखावटी रोशनी देखने जाती है, लेकिन आज हमे जिस रोशनी की जरूरत है वह तो प्रेम की रोशनी है। हमारे दिलों में प्रेमकी रोशनी पैदा होनी चाहिए। तभी सब लोग बधाअिया पाने लायक बन सकते है। आज हजारों-लाखो लोग भयानक दुख भोग रहे है। क्या आप लोगों में से हर एक अपने दिल पर हाथ रखकर यह कह सकता है कि हर दुखी आदमी या औरत––फिर वह हिन्दू, सिक्ख या मुसलमान कोअी भी हो––मेरा सगा भाअी या बहन है ? यही आप की कसौटी है। राम और रावण भलाअी और बुराअी की ताकतों के बीच हमेशा चलनेवाली लडाई के प्रतीक है। सच्ची रोशनी भीतर से पैदा होती है।
हरिजनसेवक, २३-११-१९४७
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अवसानसे एक दिन पहले
[२ फरवरी, १९४८ को श्री किशोरलालमाअीको गांधीजी के हाथका लिखा हुआ एक पोस्ट कार्ड मिला, जिसकी नकल नीचे दी जाती है।
नोट––श्री शकरन हिन्दुस्तानी तालीमी सघ, सेवाग्राममे शिक्षक है।
यहा 'किया' क्रिया का सम्बन्ध गांधीजी की 'करो या मरो' की प्रतिज्ञासे है, जो अुन्होंने दिल्ली पहुंचने पर ली थी।
'दोनों को आशीर्वाद' का मतलब है––श्री किशोरलालमाअीको और उनकी पत्नी श्री गोमतीबहनको।
––सम्पादक]
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