शरीर तो आखिर अेक दिन मिटने ही वाला है। अुसका स्वभाव ही है कि वह हमेशाके लिअे रह ही नही सकता। और तिस पर भी लोग अपने अन्दर रहनेवाली अमर आत्माको भुलाकर अुसीका ज्यादा प्यार-दुलार करते है। रामनाममे श्रद्धा रखनेवाला आदमी अपने शरीरको अैसे झूठे लाड नही लडायेगा, बल्कि अुसे अीश्वरकी सेवा करनेका अेक जरिया-भर समझेगा। अुसको अिस तरहका माकूल जरिया बनानेके लिअे रामनामसे बढकर दूसरी कोअी चीज नही।
"रामनामको हृदयमे अकित करनेके लिअे अनन्त धीरजकी जरूरत है। अिसमे युग-के-युग लग सकते है, लेकिन यह कोशिश करने जैसी है। अिसमे कामयाबी भी भगवानकी कृपासे ही मिल सकती है।
"जब तक आदमी अपने अन्दर और बाहर सचाअी, अीमानदारी और पवित्रताके गुणोको नही बढाता, तब तक अुसके दिलसे रामनाम नही निकल सकता। हम लोग रोज शामकी प्रार्थनामे स्थितप्रज्ञका वर्णन करनेवाले श्लोक पढते है। हममे से हरअेक आदमी स्थितप्रज्ञ बन सकता है, बशर्ते कि वह अपनी अिन्द्रियोको अपने काबूमे रखे और जीवनको सेवामय बनानेके लिअे ही खाये, पीये और मौज-शौक या हसी-विनोद करे। मसलन्, अगर अपने विचारो पर आपका कोअी काबू नही है और अगर आप अेक तग अधेरी कोठरीमे अुसकी तमाम खिडकिया और दरवाजे बन्द करके सोनेमे कोअी हर्ज नहीं समझते और गन्दी हवा लेते है या गन्दा पानी पीते है, तो मै कहूगा कि आपका रामनाम लेना बेकार है।
"लेकिन अिसका यह मतलब नही कि चूकि आप जितने चाहिये अुतने पवित्र नही है, अिसलिये आपको रामनाम लेना छोड देना चाहिये। क्योकि पवित्र बननेके लिअे भी रामनाम लेना लाभकारी है। जो आदमी दिलसे रामनाम लेता है, वह आसानीसे अपने-आप पर काबू रख सकता है और अनुशासनमे रह सकता है। अुसके लिअे तन्दुरुस्ती और सफाअीके नियमोका पालन करना सहल हो जायगा। अुसकी जिन्दगी सहज भाव से बीत सकेगी—अुसमे कोअी विषमता न होगी। वह किसीको सताना या दुःख पहुचाना पसन्द नही करेगा। दूसरोके दु:खोको मिटानेके लिअे, अुन्हें राहत पहुचानेके लिअे, खुद तकलीफ अुठा लेना अुसकी आदत मे आ जायगा और अुसको हमेशाके लिअे अेक अमिट सुख का लाभ मिलेगा—अुसका मन अेक शाश्वत और अमर सुखसे भर जायगा।