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पृष्ठ:Ramanama.pdf/७

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होगे, तो शरीर अपने-आप नीरोग हो जायगा। गाधीजीने देखा कि अिस ध्येयको पानेके लिअे रामनाम या अुस बडे डॉक्टरमे हार्दिक श्रद्धा रखने और अुसका सहारा लेने जैसी अुपयोगी कोअी चीज नहीं है। गाधीजीको यकीन था कि जब मनुष्य अपने-आपको पूरी तरह अीश्वरके हाथोमे सौप देता है और भोजन, व्यक्तिगत सफाअी तथा आम तौर पर अपने-आपको और खास तौर पर काम-क्रोध वगैरा विकारोको जीतनेके बारेमे और मानव बन्धुओके साथके अपने सम्बन्धोके बारेमे अीश्वरके नियमोका पालन करता है, तो वह रोगसे मुक्त रहता है। अैसी स्थितिको प्राप्त करनेके लिअे वे खुद भी हमेशा कोशिश करते रहे। और दूसरोको वही ध्येय प्राप्त करनेमे मदद पहुचानेके लिअे अुन्होने अुरुळीकांचनमे अपनी आखिरी सस्था 'कुदरती अुपचार केन्द्र' कायम की थी, जहा खुद अुनके द्वारा अमलमे लाये गये कुदरती अिलाजके अलावा बीमारोको रामनामकी अुपयोगिता भी सिखाअी जाती है। यह छोटीसी पुस्तक अिस बारेमे गाधीजीके विचार और अनुभव अुन्हीके शब्दोमे पाठकोके सामने सक्षेपमे रखना चाहती है।

भारतन् कुमारप्पा