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प्रार्थना-प्रवचनोमें से



अीश्वरके नामका अमृत

प्रार्थनामे गाये हुअे मीराबाईके भजनकी व्याख्या करते हुअे गाधीजीने कहा अिस भजनमे भक्त आत्मासे जी भरकर अीश्वर-नामका अमृत पीनेको कहता है। मामूली खान-पानसे आदमीका दिल अूब जाता है और जरूरतसे ज्यादा खाने-पीनेसे बीमारी होती है। लेकिन अीश्वर-नामके अमृतकी अैसी कोअी सीमा नही है। आदमी जितना ज्यादा अुसे पीता है, अुतनी ही अुसके लिअे अुसकी प्यास बढती है––लेकिन वह हृदयमे गहरा पैठ जाना चाहिये। जब अैसा होता है तब हमारा सारा भ्रम और आसक्ति, सारी वासना और द्वेष दूर हो जाते हैं। शर्त यही है कि हम अिस कोशिशमे लगे रहे और धीरज रखे। अैसे प्रयत्नका अनिवार्य नतीजा सफलता है।

––नअी दिल्ली, १८-६-'४६

श्रद्धाका चमत्कार

आजकी प्रार्थना-सभामे गाधीजीने कहा "प्रार्थनामे श्रद्धा रखनेवालेके लिअे निराशा नामकी कोअी चीज नही होनी चाहिअे, क्योकि वह जानता है कि समय अुस सर्वशक्तिमान भगवानके हाथमें है। वही समय पर सब कुछ करता है। अिसलिअे भक्त हमेशा श्रद्धा और धीरजके साथ किसी भी कामके होनेका रास्ता देखता है।"

गजेन्द्र-मोक्षकी कथा पर टीका करते हुअे अुन्होने कहा "अिस कथाका निचोड यह है कि परीक्षाके समय अीश्वर हमेशा अपने भक्तकी मदद करता है। शर्त यही है कि अुस पर मनुष्यकी जीती-जागती श्रद्धा हो और उसीका मनुष्य आसरा ले। श्रद्धाकी कसौटी यह है कि अपना फर्ज अदा करनेके बाद अुसका जो कुछ भी भला या बुरा नतीजा हो अुसे मनुष्य मान ले। सुख आये या दुख, अुसके लिअे दोनो बराबर होने चाहिए। जनक राजाके बारे मे कहा जाता है कि अेक बार अुन्हे किसीने आकर कहा 'महाराज! आपकी राजधानी मिथिला जल रही है।' अुन्होंने जवाब दिया 'मिथिलाया प्रदग्धाया न मे दह्यति कश्चन'–– मिथिलाको आग लगी है तो मुझे अुससे क्या? अुनके अिस धीरज और शान्तिका रहस्य यह था कि वे हमेशा जाग्रत रहते थे, हमेशा अपना फर्ज अदा करते थे। अिसलिअे बाकी सब कुछ वे अीश्वर पर छोड सकते थे।