परिशिष्ट
सच्चा डॉक्टर राम ही है
नोआखाली में आमकी नाम का अेक गाँव है। वहाँ बापूजी के लिअे बकरी का दूध कहीं न मिल सका। सब तरफ तलाश करते-करते जब मैं थक गअी, तब आखिर मैंने बापू को यह बात बताअी। बापूजी कहने लगे "तो अुसमें क्या हुआ? नारियल का दूध बकरी के दूध की जगह अच्छी तरह काम दे सकता है। और बकरी के घी के बजाय हम नारियल का ताजा तेल निकाल कर खायेगे।"
अिसके बाद नारियल का दूध और तेल निकालने का तरीका बापू ने मुझे बताया। मैंने निकाल कर अुन्हें दिया। बापूजी बकरी का दूध हमेशा आठ औंस लेते थे, अुसी तरह नारियल का दूध भी आठ औंस लिया। लेकिन हजम करने में बहुत भारी पड़ा और अुससे अुन्हें दस्त होने लगे। अिससे शाम तक बापू को अितनी कमजोरी आ गअी कि बाहर से झोपड़ी में आते-आते अुन्हें चक्कर आ गये।
जब-जब बापू को चक्कर आने वाले होते, तब-तब अुनके चिह्न पहले ही दिखाई देने लगते थे। उन्हें बहुत ज्यादा जभाअियाँ आतीं, पसीना आता, और कभी-कभी वे आँखें भी फेर लेते थे। इस तरह उनके जभाअियाँ लेने से चक्कर आने की सूचना तो मुझे पहले ही मिल चुकी थी। मगर मैं सोच रही थी कि अब बिछौना चार ही फुट तो रहा, वहाँ तक तो बापूजी पहुँच ही जायेंगे। लेकिन मेरा अन्दाज गलत निकला। और मेरे सहारे चलते-चलते ही बापूजी लड़खड़ाने लगे। मैंने सावधानी से उनका सिर संभाल रखा और निर्मल बाबू को जोर से पुकारा। वे आये और हम दोनों ने मिलकर उन्हें बिछौने पर सुला दिया। फिर मैंने सोचा––'कहीं बापू ज्यादा बीमार हो गये, तो लोग मुझे मूर्ख कहेंगे। पास के देहात में ही सुशीलाबहन हैं। अुन्हें न बुलवा लूँ?' मैंने चिठ्ठी लिखी और भिजवाने के लिअे निर्मलबाबू के हाथ में दी ही थी कि अितने में बापू को होश आया और मुझे पुकारा "मनुडी!"
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