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तिनि रिधि पूछिय ताहि । कवन कारन इत अंगम ।। कवन थान सुन नास । वन दिसि करबि सु जंगम ।। मौ नाम ढुंढ वीसत नृपति । साप देह लम्भिय दथव ।। इन स तेह गंगा दरस । तजन देह जन मंत कृतः ।।५६१.... तब्ब मनि बर हसि थौं कहिय । बिन तप ताहिय न राज ।। अन धन सुत दारी बुदित । लहौ सबै सुख साज ||५६४.... मुनि के इस उपदेश का फूल यह हुआ कि ढंढा ने तीन सौ अस्सं वर्ष तक दपस्या की : । तपत निसाचर तप्पं । बीते वरष तीन से असीयं ।। भय बाधा दिए अंगं । लग] राम बारना ध्यानं ।।५६७, ०१ (ब) एक बन में एक ऋषि का मिलन और उनका रूप देखिये : | तहां से अॅदतर रिघ इक । क्रस तन अंग सरंग ।।। दव दद्ध जनु द्र मन कोइ । के कोई भूत भुअंग ।।१७ जप माला मृग छल । गोटा विभूतं जोग पट्टायं ।। कुविजा खाएर थ्थे । रिद्धं सिद्धाय बच्चनयं माझं । १८, स०६ (स) एक बन में आखेट करते हुए पृथ्वीराज ने पर्चत की कन्दरा में सिंह के अम से धुयाँ करवाया जिससे क्रोध में मर मुनि निकले और उन्होंने राजा को आए दे दियो : कोमल सु कमल द्रा अवै नीर । रद चंपिं अधर कंपत सरीर ।।। जट जूट झुटि उर¥त पाय । स्नग चरम परम नंयौ रिसाव ।।१५३ तनि तोरि डारि दिय अच्छ माल । निकर रिषीस बेहाल हाल ।। गहि दर्भ हस्त बर नीर लीन । प्रथिराज राज कहुँ श्राम दीन ।।१५४,१०६३ स्वर्ग--- स्वर्ग का वर्णन पृथक रूप से नहीं किया गया है। स्वाम-धर्म का पालन करते हुए युद्ध में वीर-गति पाने वालों का स्वर्ग-गमन कवि ने बड़े उत्साह से वर्णन किया है । योद्धाओं का रश-कौशल देखकर कहीं जै जै सुर सुर लोक जय हो उठता है, कहीं अप्सरायें देव-चरण त्याग र लोकयुद्ध-भूमि में बीर-वरण हेतु छातीं हैं--( वर अच्छर बिंटबौ सुरग मुक्के ने सुर गहिय ), कहीं किसी के मृत्यु-पाश में जाते ही अप्सरायें उसे गोद में ले लेती हैं और वह देव-विमान में चढ़कर चल देता है.--१ उच्चैरान अच्छर सो लयौ, देव विमानन चढ़ि गयौ ), कहीं योद्धाओं को युद्ध में