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। ६६ ) विजयी होने पर ऐहिक भोग प्राप्त करने की चर्चा है तो कहीं मरने पर अप्सराओं की प्राप्ति की----( जीविते लभ्यते लक्ष्मी मृते चापि सुरांगणा )। | वीरों को स्वर्ग-लोक मात्र ही नहीं मिलता कभी-कभी वे यमलोक, शिवलोक और ब्रह्मलोक के ऊपर सूर्यलोकं भी प्राप्त कर लेते हैं : | जमलोक न शिवपुर ब्रह्मपुर । भान थान भानै भयौ ।। रासो में वीरों के लिये स4-लोक की महिमा सर्वोपरि दिखाई पड़ती है। महाभारत के प्रख्यात योद्धा र इच्छा-मृत्यु वाले महात्मा भीष्म शर-शय्या पर पड़े हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे, क्योंकि दक्षिणायन या दक्षिण-मार्ग अर्थात् आवागमन से मुक्ति के वे शाकांक्षी थे । उपनिषद-काल तक सूर्य ब्रह्म के पर्याय निश्चित हो चुके थे । 'ईशावास्य में उपासक अपने मार्ग की याचना करता हु कहता है कि आदित्य "मण्डलस्थ ब्रह्म का मुख ज्योतिर्मय पात्र से ढका हुआ है। हे पूषन् , मुझ सत्यधर्मा को अात्मा की उपलब्धि कराने के लिये तू उसे उघाड़ दे : हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहित मुखम् ।। | तन्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ।। १५ । और हे जगपोषक सूर्य ! हे एकाकी गमन करने वाले, हे यम ( संसार का नियम करने वाले ) ! हे सूर्य ( प्राण और रस का शोषण करने वाले ) ! है प्रजापतिनंदन ! तू अपनी किरणों को हटा ले ( अपने तेज को समेट ले )। तेरी जो अतिशय कल्याणमय रूप है उसे मैं देखता हूँ। यह जो आदित्य सरडलस्थ पुरुष है वह मैं हूँ : पूषन्नेकर्षे यम सूर्य प्राजापत्य व्यूह रश्मीन्समूह । तेजो यत्ते रूपं कल्याणतमं तत्ते पश्यामि योऽसावसौ पुरुष : . सोऽहमस्मि ||१६ । अस्तु, सूर्य-लोक पहुँच कर ब्रह्म और जींद की एकता अनिवार्य थी इसी से स्वर्ग-लोक, शिव-लोक, ब्रह्म-लक { ब्रह्मः का लोक ), यम-लोक अदि भोग-लोकों की अपेक्षा आवागमन मिटाने वाले सूर्य-लोक की प्राप्ति की अभिलाषा ज्ञानी योद्धाओं द्वारा की जानी उचित ही थी । स्वामी के लिये युद्ध में मृत्यु प्राप्त करने वाले हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के योद्धाश्नों के क्रमशः स्वर्ग और बिहिश्त में अप्सरा और हूरों की प्राप्ति के दर्शन कवि की सहिष्णुता के परिचायक हैं ! फ़ारसी इतिहास में जहाँ कसीने काफ़िर हिन्दू तलवार के घाट उतार कर दोज़ल भेज दिये