पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१०४)

________________

चढयौ साहि साहाब करि बुद्धि सः । करी पंक फौज सुसे तथ्ट्र राजं । ३ भद्द बारे प्रकारे ग नं ! इलै र सई बैंरत बानं ।।४० घरौ फौज में सीस सुविहान छ । तिनं देते कंपई चित्त सशं ।। तह वारि हथ नारि कः ।.......... ..........॥ ४१ वहां लघ्य पाइपंत लपेपं । दह रत्र वैष्य की बनी रे ।। तहां तीन पाहार मैं मत डर । तिनं गज्जते मंद मदन सोएं ।। ३३ उहा सत्त सराव सुतः। 3 । मन पेप, मध्य सहा कोट ।। इमं सब्जि सुरा र नहि अप्पं ।। और साँभर-भूमि में पृथ्वीराज की या-दाक्रा का एक अंश भी देखिये : चढ़िय राज प्रथिन । सा पेट लिए सजि ।। सथ सुभ सामंत । सँग सेना सु तुच्छ जि ।। जाम देव का कन्ह । अन्तलाई निडर र ।। मति मंत्री मासे । व चाइजुक* सूर || परमार सिंघ सूरन समर्थ | रघुवंसी राजन सुवर ।। इतने सहित भर सँन चलि ! उडी रेनु यस पर ।। ५१ वाशुर जाल बल्ल । हिरन ते सु स्वन गर्ने । कालदूत मग विहंग । विवाह तीथ चलत बन ।। सर नायक वंदूक। हरित ऊन बसुन बिरज्जिय ।। मैं जिमि शिरि करि अरग । अप्प बन्न संपति सज्जिय !! है भारि भईय झन् सकल । म असर दल संचरिय ।। पिल्लन सिकार चढि पति । अथियराज मह संभरि ! ५२, स० २५ [उपयुक्त छन्द में बंदूक' शब्द उक्त छन्द का परवर्ती प्रक्षेप होना सिद्ध करता हैं । उपयम ( विवाह --- रासो में कई विवाहों का उल्लेख है जिन्हें प्रधानतः दो प्रकारों में रखा जा सकता हैं । एक तो वे हैं जहाँ नाता-पिता की इच्छा से वर विवाह करने आता है और दूसरे वे जहाँ वर और कन्या परस्पर रूप-गुण श्रवण से अनुरक्त हो जाते हैं तथा माता-पिता की इच्छा के विपरीत कुन्या द्वारा अमंत्रित र अाकर देवालय सदृश संकेत-स्थान से उसका हर करता है। और उसके पक्ष बालों को पराजित करके अपने घर पहुँच जाता है जहाँ