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( १०६ } {{{ दिल्लीश्वर अनंगपाल तोमर की कन्या कमला और अजमेर-नरेश सोमेश्वर के विवाह के ) कुछ दिनों बाद रानी के गर्भ रहा जिसकी कला प्रतिदिन उसी प्रकार बढ़ी जैसे भाद्र-मास में मेघों को दल, शुक्ल पक्ष में चन्द्रकला अथवा प्रियतम से मिलने पर प्रति क्षण सुग्धा सुन्दरी का यौवन बढ़ता है। शुभ गर्भ शरीर में उसी प्रकार बढ़ा जैसे पूर्णिमा में सागर बड़ता है। गर्भिणी पर जैसे-जैसे ज्योति चढ़ती जाती थी वैसे-वैसे ही पति और पत्नी के हृदय हुललित हो रहे थे । १• अनंगपाल तोमर की पुत्री और सोमेश्वर की गृहिणी ने क्षत्रियों के दानव कुल वाले पृथ्वीराज को धारण किया । धपुर में ढूंढा के वरदान से सोमेश्वर के प्रथम पुत्र का जन्म स्मरण कर गन्धर्वो ने पुष्पांजलि डाली, ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चारण किया, सिद्धों ने अर्द्ध रात्रि में बालक का सिर स्पर्श किया और अाकाश में घनघोर शब्द ने उसके जीवन में युद्ध और विजय का घोष किया ! एक सौं सूरमा भी साथ ही आये तथा चंद भट्ट कीर्ति-कथन हेतु जन्मा.....३ तपस्विनी वालः का श्राप वीसलदेव के सिर पर धारण किया और तीन सौं अस्सी वर्ष तक दिल्ली के समीप की गुफा में समाधि लगाई...: जिस दिन पृथ्वीराज ने जन्म लिया उस दिन अनंत दान दिये गये तथा कन्नौज, आज़नी और अन्हलवाड़ा पइन में रणचंडी किलकिला उठी । जिस दिन पृथ्वीराज का जन्म हुआ कन्नौज में बात फैल गई, राजनपुर भंग हो गया, पईन में छिद्र हो गये, मृत्यु ने भरपेट भोजन किया, पृथ्वी का भार उतर गया तथा युगों तक कीर्ति प्रशस्त हो गई । पृथ्वीपति अनंगपाल ने योतिषी व्यास को अपनी पुत्री के पुत्र की जन्म-लान पर विचारार्थं बुलाया । उसने कहा कि ( बालक ) चारों चक्र ( दिशाओं ) में अपना नाम चलावेगी....कलिकाल में यह अनेक युद्ध करने वाला सौ भत्यों सहित दैत्यों { म्लेच्छों ) से भिड़ेगा । दिल्ली के कारण ही यह अपूर्व अवतार ( जन्म } हुअा है।६ पुत्री के पुत्रोत्सव में राजा ने अनेक दान दिये और { सबका } इन संस्कार किया !! घर-घर धमार गाये गये हैं ऐसा हर्घ का साम्राज्य बिखर गया ) मा सर्प को मणि मिल गई हो । कन्नौज में जयचन्द्र की माता ने अपनी साँभर वाली बहिन के पुत्र का जन्म सुनकर सुवर्ण, वस्त्र और थाल सहित ब्राह्मण भेजा, परिवार वालों को पहिरावे दिये, ब्राणों | ( १ ) छं० ६८४; ( २ ) ॐ०, ६८५; (३) ॐ० ६८६; (४) छं० ६८७; (५) छु० ६८; (६ ) ॐ० ६८६ ।