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शर्म किंसन किती सरस । कहत लगै बहु बार | | छुच्छ व कविचंद की । सिर चहृन भार ॥ छं० ५८५,१०, और तीसरी दिल्ली किल्ली कथा में योगिनिपुर के राजा अनंगपाल तौमर द्वारा वहाँ पृथ्वी में अभिमंत्रित कील गाड़ने, उखाड़ने और फिर गाड़ने पर उसके टीले रहने के कारण दिल्ली ( दिल्ली ) नाम पड़ने का हाल कहकर उनके द्वारा अपने दौहित पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली-राज्य दान करने के विचार का वृत्तान्त दियो । चौथे “लौहाना अजिानुबाहू समय में लोहाना आजानुबाहु नामक सामंत के साहस के फलस्वरूप पृथ्वीराज द्वारा विपक्षी के ओरछागढ़ का उसे पुरस्कार देना और उसका युद्ध करके उस पर अधिकार कर लेने का वर्णन है । पाँचवें 'कन्द पट्टी समय में पृथ्वीराज के आश्रित चालुक्य नरेश भोलाराय के सात चचेरे भाइयों को दरबार में में छ एठने के अपराध पर कन्ह चौहान का युद्ध में सब को मार डालने और अन्त में दण्डस्वरूप अपनी आँखों पर सोने की पट्टी चढ़वाने का प्रसंग है । छठवें घंटक वीर बरदान समय में वन मैं मृगया-रत पृथ्वीराज का चंद की कृपा से बबन 'वीरों को सिद्ध करने का हाल है। सातवें नाहरराय समय में मंडोवर के शासक नाहरराय द्वारा अपनी कन्था पृथ्वीराज को व्याहने का वचन पलटने के चरिणामस्वरूप युद्ध तथा चौहान का विजय प्राप्त करके इच्छिनी से विवाह करने का विवरण है। अठवीं मेवाती मुगल कथा' में मेवात के राजा मुगल ( मुद्गलराय ) से सोमेश्वर द्वारा कर माँगने पर युद्ध और उनकी विजय का वृत्त है । नवीं हुसेन कथा में ग़ज़नी के शाह शहाबुद्दीन और उसके चचेरे भाई मीरहुसेन का दरबार की चित्ररेखा नामक सुन्दरी वेश्या से प्रेम, शाह के मना करने पर भी हुसेन की अवज्ञा के कारण उसका देश-निर्वासित हो पृथ्वीराज के शरणार्थी होकर गोरी के आक्रमण में शौर्य दिखाकर मारे जाने और चित्ररेखा को जीवित ही उसकी कब्र में बंद हो जाने तथा बंदी गौरी का सन्धि के बाद हुसेन के पुन्ने राज़ी के साथ गज़नी लौटने का वर्णन है। दसवें अधेटक चूक वर्णने में अपना बैर भुनाने के लिये आखेट में संलग्न पृथ्वीराज पर ग़ोरी द्वारा अाक्रमण परन्तु युद्ध में उसके हारकर भाग खड़े होने का वृत्तान्त' है । ग्यारहवें ‘चित्ररेखा समयौ’ में गौरी-द्वारा अरिब ख़ाँ पर श्रक्रिमण परन्तु सुन्दरी चित्ररेखा को प्राप्त करने पर सन्धि' करने और सर्वथा उसके वशीभूत होने का आख्यान है। बारहवें भोलाराय भीमदेव समय में सुलतान रोरी की भीमदेव पर चढ़ाई को समाचार पाकर पृथ्वीराज का अपने दोनों शत्रुओं से लड़ने के लिये सन्नद्ध होने और भोलारयि की