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की चर्चा है। बत्तीसवें ‘करहे रो जुद्ध प्रस्ताव’ में मालवा में मृगया-रते पृथ्वीराज का उज्जैन के भीम प्रसार को जीतकर उसकी कन्या इन्द्रावती से विवाह के लिये प्रस्तुत होने पर, भीमदेव चालुक्य द्वारा चित्तौर गढ़ घेरे जाने का समाचार पाकर, पजूनराय को अपना खड्ग बँधवा कर विवाह के लिये भेजने और स्वयं रावल जी की सहायतार्थं जाकर युद्ध में विजयी होने का वृन्स' है । तेतीसवें इन्द्रावती ब्याह में भीमदेव प्रमार का नीरस हृदय पृथ्वीराज को अपनी कन्या इन्द्रावती न देने के निश्चय के फलस्वरूप चौहान से युद्ध और उनके विजयी होने पर विवाह का हाल है। चौतीसवें जैतराव जुद्ध सम्यौ' में नीतिराव खत्री द्वारा खट्ट, वन में पृथ्वीराज के आखेट-मग्न होने का समाचार पाकर गौरी का अाक्रमण, युद्ध और उसके वन्द होकर मुक्त किये जाने का समाचार है। पैंतीसवें कांगुरा जुद्ध प्रस्ताव में काँगड़ा के राजा भान रघुवंशी पर पृथ्वीराज के अाक्रमण और युद्ध में उसे परास्त कर उसको कन्या से विवाह की कथा है। छत्तीसवें हसवती विवाह नाम प्रस्ताव' में रणथम्भौर के राजा भान को अपनी कन्या हंसविती से बँदेरी के शासक पंचाइन का विवाह करने का प्रस्ताव पाने पर उले ठुकराकर पृथ्वीराज को अपनी सहायता के लिये बुलाने, मंचाइन के गोरी की सहायता सहित आ धमकने, पृथ्वीराज के आगमन पर युद्ध में उनकी विजय के बाद हंसावती से उनके विवाह और प्रेम-क्रीड़ा को प्रसंग है । सेतीसवाँ “पहाड़राय सम्यौ’ सुलतान गौरी का दिल्ली पर आक्रमण, युद्ध और पहाड़ाय तोमर द्वारा उसके पकड़े जाने तथा दंड-स्वरूप कर देकर छूटने का व्यौरा देता है । अड़तीसवीं वरुण कथा’ एक चन्द्रग्रह के अवसर पर सोमेश्वर का यमुना में स्नान करते समय वरुश के वीरों से युद्ध में पराजित होकर अपने साथी सामंतों सहित भूर्छित होने और प्रात:काल यह दशा देखकर पृथ्वीराज द्वारा यमुना की स्तुति से सबको चैतन्य करने का उल्लेख करती है। उन्तालीसवें सोमवध सम्यौ’ में गुर्जरेश्वर भीमदेव चालुक्य के अजमेर के ऊपर आक्रमण पर युद्ध में सोमेश्वर की मृत्यु और उत्तर से लौटकर पृथ्वीराज का यह सुनकर बदला लेने की शपथ और उनकी राजगद्दी का विवरण है। चालिस जून छोंगा नाम प्रस्ताव में सोनिंगरी दुर्ग में स्थित भीमदेव चालुक्य पर चौहान नरेश के सामंत पजूनराय का छापा मारकर सकुशल लौटने की वार्ता है । इकता लिसवें “पज्जून चालुक्य नाम प्रस्ताव में कसधज्ज की सेना सहित शौरी के दिल्ली आक्रमण और प्रज्जूनराय की अध्यक्षता में पृथ्वीराज की विजय वर्णित है ।