पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(११५)

________________

इथालिस चंद द्वारका समय दिल्ली से कविचंद की द्वारिका तीर्थऔर चित्तौड़ में रावल जी से तथा अन्हलवाड़ा में भीमदेव चालुक्य से भेंट करके उसके दिल्ली लौटने का उल्लेख करता है। तेंतालिस ‘कैमास जुद्ध में और के आक्रमण का मोर्चा कैलास दाहिम द्वारा लिये जाने, शाह के पराजित होकर वन्दी होने तथा दंड भरने पर पृथ्वीराज द्वारा छोड़े जाने की चर्चा है । चालिसवें भीमवध सम्य' में अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये भीमदेव चालुक्य र पृथ्वीराज की चढ़ाई, युद्ध में चालुक्य की मृत्यु और चौहान द्वारा उसके पुत्र कचराय का तिलक किये जाने का प्रसंग है । पैंतालिसवाँ संयोगिता पूर्व जन्म प्रस्ताव इन्द्र-प्रेषित संजुधौ अप्सर की सुमंत मुनि का तए भंग करने के लिये अाहे परन्तु प्रेमकी पूर्ति के काल में अचानक मुनि के पिता जरजे ऋषि के आगमन और अप्सरा को पृथ्वी पर जन्म लेने के श्राप-स्वरूप संयोगिता का अवतरण वर्णन करता हैं । छियालिसवें विनय मंगल नाम प्रस्ताव में किशोरी राजकुमारी संयोगिता को वृद्धी मदन ब्राह्मण द्वार विनय यू आचरण की शिक्षा की उल्लेख है। सैंतालिस ‘सुक वर्णन' में एक शुक और शुकी का क्रमशः ब्राह्मण और ब्राह्मणी वेश में संयोगिता और पृथ्वीराज को रूए और गुणानुवाद द्वारा परस्पर आकर्षित करने का लेख है। अतालिसवें *बालुकाइय सम्यौ में जयचन्द्र के राजसूय-यज्ञ करने, पृथ्वीराज को उसमें द्वारपाल का कार्यभार ग्रहण करने के लिये बुलाने और उनकी अस्वीकृति इर उनकी सुवर्ण-मूर्ति उक्त स्थान पर खड़े किये जाने तथा इस समाचार को पाकर पृथ्वीराज के रोष युक्त हो कान्यकुब्जेश्वर के भाई बालुका राय पर चढ़ाई करके उसे मारने तथा उसकी स्त्री का विलाप करते हुए कुन्नौजयज्ञ में जाकर पुकारने का लान है । उन्चासवे पंग जग्य विध्वंसनो नाम प्रस्ताव में सारी बात सुनकर और अपना यज्ञ विध्वंस हुआ देख जयचन्द्र की पृथ्वीराज पर चढ़ाई करने, संयोगिता की प्रीति दृढ़तर होने तथा आखेट में संलग्न चौहान का शत्रुओं से घिरने पर भी केवल एक सौ सामंत की सहायता से विजयी होने का हाल है। पचासवें संजोगता नाम प्रस्ताव में संयोगिता की स्वयम्वर करने के विचार से उनका मन पृथ्वीराज की और से फेरने के लिये अथचन्द्र द्वारा एक दूत भेजने और राजकुमारी को अपने हठ पर दृढ़ जानकर आँगा-तट के एक महल में निवास देने का विवरण है । इक्यावन हाँसीपुर प्रथम जुद्ध में मझा जाती हुई सुललान की बेग़मों को हाँसीगढ़ स्थित श्री राज के