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का दरबार दि खाने का वचन देने का प्रसंग हैं । अङः बचें दुरा केदार सन राज़नी दरबार के भट्ट दुग केदार और चंद का दिल्ली में बाद बाद में समान सिद्ध होने, धयिन ६यस्थ द्वारा भेद पाकर शोरी के अाक्रम का समाचार दुग केदार द्वारा भेजे *विदास से पृथ्वीराज को मिल जाने के कारण उनको भी युद्ध-हेतु सन्नद्ध हो जाने, तुमुल युद्ध में शाजानुबाहु लोहाना द्वारा उरी को बन्दी बनाने, उसकी सेना के पलायन करके और शाह के दंड अदा करने पर छुटकारा पाने का वृक्षान्त है। उनसठ 'दिल्ली वर्णन' में दिल्ली दरबार का सौन्दर्य, निगमबोध के उद्यान की शोभा, पृथ्वीराज के सु सभासदों के नाम, दिल्ली नगर का वर्णन, राजकुमार रैनसी की सवारी और उनके साथी कुमार सामंतों का उल्लेख तथा बसन्तोत्सव का विवरण है। साठेवी जैराम कथा में कन्नौज के स्वयम्बर में तीन बार अपनी मूर्ति को संयोगिता द्वारा वरमाला पहिनाने के कारण, इसे गंगातट के महल में निवास देने का वृत्तान्त एक जंगम से सुनकर पृथ्वीराज राजकुमारी के प्रेम से उद्वेलित हो चंद से कन्नौज चलने को अग्रिह करते हैं और मृगया के उपरान्त शिद-पूजन करके वे फिर कवि से चलने की च लाते हैं । इकसठ कनवज्ञ समयो' में पृथ्वीराज का छै रानियों के साथ घट्-ऋतुयें बिताकर सौं सामंतों और ग्यारह सौ र.वारों तथा चंद सहित कन्नौज गमन करने, कन्नौज के समीप पहुँचने पर सबको केवि के साथियों के वेश में रूप बदलने, चंद को अपने साथियों समेत राजा जयचन्द्र के दरबार में जाने और उनसे विनोदपूर्ण तथा प्रगल्भ वाताप के उपरान्त सम्मानित होने और आदर-सत्कार से ठहराये जाने, पृथ्वीराज के छद्म वेश का उद्घाटन होने पर कवि का पड़ा। घेरने की जयचन्द्र की अङ्ग तुथा युद्धारम्भ, इसी समय पृथ्वीराज का गंगा-तट के महल से सगित ३ अपने धड़े पर बिठाकर अपने दल में श्राने तश्री क्रमश: दल-श्रा की विशाल वाहिनी से लड़ते-भिड़ते दिल्ली की ओर प्रस्थान और सामंतों की अपार हानि सहकर अपने राज्य की सीमा में पहुँचने तब पंगराज का पश्चाताप करते हुए कन्नौज लौट जाने, दिल्ली पहुँचकर संयोगिता और पृथ्वीराज के विधिपूर्वक विवाह में जयचन्द्र द्वारा पुरोहित के हाँथ से बहुत सा दहेज भेजने तथा दम्पतिविलास और सुख का विस्तृत वर्णन है। जानें शुक चरित्र प्रस्ताव में इलिनों के प्रत्यक्षदर्शी चाल इक द्वारा संयोगिता का नख-शिख श्रौर रति-क्रीड़ा अन, सपत्नी- द्वेष से इच्छिनी का संयोग के प्रति मनमुटाव