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{ ११८ ) और पृथ्वीराज द्वारा उसके निराकरण का उल्लेख है ! तिरसठवें : ग्रेट ६८ श्राप नाम प्रस्ताव में कन्नजयुद्ध में अनेक सामंतों के मारे जाने से खिन्न चित्त पृथ्वीराज का मन बहलाने के लिये रानियों सहित वन-यात्रा तथा वहाँ भोज और शृगया का रस लेते, लौटते समय एक गुफा में सिंह के भ्रम से धुळ कराने पर उससे एक क्रोधित सुनि का निकल कर पृथ्वीराज को शत्रु द्वारा चलु विहीन किये जाने का श्राप देने, जिसे सुनकर सबके दुखी होने और संयोगिता के विशेष पश्चाताप करने तथा दिली पहुँचकर दान दिये जाने और राजा की अन्तरङ्ग महलों में निवास करने का प्रसंग है । चौंसठवें *धीर पुडीर नाम प्रस्ताव में पृथ्वीराज क; कन्नौज से 4 अाने का पछतावा और सामंदों के बलाबल की परीक्षा के लिये जैत-रम्भ का निराः, जिसका बेचे चंद पुडीर के पुत्र धीर पंडीर द्वारा किये जाने पर उसका सम्मान और जागीर प्रदान, अपने को पकड़ने का धर की प्रतिज्ञा सुनकर हैरी की उसे पकड़ने के लिये राखरों को नियुक्ति, जालंधरी देवी के पूजन हेतु जाते हुए धीर को बन्द करके चोरी के सम्मुख लाये जाने पर उसकी बल, धैर्य र साहस देखकर सुलतान का उसे फिर अपने को पकड़ने की बात निर्भयता से कहने पर उसे मुक्त करके एक अवसर देने और उसके जाने के बाद ही पृथ्वीराज पर चढ़ाई कर देने, वचन के पक्के धीर द्वारा शाह को बन्दी बनाने तथा बैजल खवास की प्रार्थना पर नृथ्वीराज द्वारा कर लेकर सुलतान की मुक्ति, जैतराव और चामंडराय के भड़काने पर धीर निर्वासन तथा री द्वारा समादृत् हो ढिल्ला नामक स्थान पर निवास प्राप्त करने और पृथ्वीराज के उसे वापिस बुलाने पर घोड़ों के सौदागरों के साथ गोरी के सैनिकों द्वारा उसका छल पूर्वक वध करने, इसे समाचार से पुडीर वीरों सहित पावस सुडीर का अाक्रमण और मुस्लिम दल की भगदड़ तथा राज्य-कार्य त्यागकर संयोगिता के साथ पृथ्वीराज के रस.विलास की विवरण हैं | पैंसठवाँ विवाह सम्यो' पृथ्वीराज की रानियों के नाम और उनसे विबह-काल में राजा की अायु की सूचना देता हैं। छाछठवें बड़ी लड़ाई रो प्रस्ताव में रावलजी का चित्तौड़ से दिल्ली आगमन परन्तु संयोगिता के बाग में देंगे पृथ्वीराज से इक्कीस दिनों तक भेंट न हो सकने, दिल्ली-राज्य की अव्यवस्था, दुर्बलता और क्षीण-शासन का भेद नीतिराव खत्री से पाकर शोरी का प्रबल अक्रिमण, प्रजाजन, गुरुराम और चंद की बड़ी कठिनता से रंग महल में रमे पृथ्वीराज तक इस अभियान की सूचना, राजा का श्रृंगार से वीर रस में परिवर्तित होना और वह वल औ से छमा याच करके 'शत्रु से लोहा लेने के लिए शक्ति