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( ११६ ) संगठन, चामंडराय की बेड़ियाँ काटी जाने, काँगड़ा के हाहुलीरबि हमीर को मना कर अपने पक्ष में लाने वाले चंद का छल पूर्वक देवी के मन्दिर में बन्दी किये जाने और हमीर के शाह के पक्ष में जाने का समाचार पाकर पृथ्वीराज द्वारा प्रेपित पविस पंडीर का हैमर के निकल भागने परन्तु उसके दल का सफाया कर डालने, रैन सी को राज्य-भार समर्पण, भयंकर युद्ध में पथ्वीज के वन्दी होने और हाथों पर राज़नी ले जाये जाने, राजन जी तथा अन्य सामंतों की वीरगति, संयमिता का प्राण-त्यारा, वीरभद्र की कृपा से चंद का देवी के मन्दिर से उद्धार, दिल्ली में त्रादियों का चितारोहण, पृथ्वीराज का हुजाब व की रणा से चक्ष विहीन किये जाने, नेत्रहीन महाराज की पन्नाता। और वीरभद्र द्वारा शोकाकुल राजकचि को प्रबोध का चित्र हैं। सरसठवें ‘बान बंध प्रस्ताव में दुखी कवि का दिल्ली पहुँचकर ढाई सास में ‘थ्वीराजरालो' को प्रवन कर, उसे अपने श्रेष्ठ पुत्र जल को अधित कर, परिवार से विद! लेझर, योगी के वेश में स्वाभि-धर्म हेतु गज़नी गमन, उपाय विशेष ले सुलतान से मिलकर और उसे प्रसन्न करके, पथ्वीराज के शब्द वेधी वा का कौशल देखने को प्रस्तुत करने, गज़नी दरबार में नेत्र-रहित ।ज्ञा को सुलतान की बैठक का पता युक्तिपूर्ण वाक्यों द्वारा देकर उनके बाग से सुलतान का बध कराने के उपरान्त अपनी जटाओं में छिपी छुरी राज को प्राणान्त हेतु देकर योग द्वारा अपने प्राण त्याग करने का प्रसंग है | अड़सठवें ॥ रयन सी नाम प्रस्ताब में दिल्ली में रैन सी की राजद्दी और गज़नी में शोरी के उत्तराधिकारी की तन्तनशीनी, पंजाब की सीमा-स्थित शाही सेना पर रैन सी के आक्रमण और लाहौर में अपने थाने बिठाने के फलस्वरूप मुस्लिम चढ़ाई तथा हिन्दू-दल का दिल्ली-दुर्ग में रहकर उससे मोर्चा लेने का निश्चय, युद्ध में दुर्ग को दीबाल टूटने पर रैन सी का वीर क्षत्रियों सहित संग्राम में वीर गति प्राप्त करने, दिल्ली के 'पराभव के बाद कन्नौ पर मुस्लिम अभियान और युद्ध में जयचन्द्र की मृत्यु का वर्णन है । अंतिम महोबा समय में समुद्रशिखर-गढ़ से पद्मावती को हरा करके अाते हुए पृथ्वीराज पर गौरी का अाक्रमण और युद्ध में उसके वन्दी किये जाने तथा चौहान के कुछ अहित सैनिकों का भूल से महोबा के राज-उद्यान में ठहरने और वहाँ के मालो से इतनड़ होने पर उसे मार डालने के फलस्वरूप राजा परमाले की अज्ञा से इन सबके मारे जाने, पृथ्वीराज की महोबा पर चढ़ाई और महान युद्ध में अल्हा-ऊदल सरीख योद्धाश्रों की मृत्यु के बाद महोबापतन तथा पञ्जूनराय को बहाँ का अधिपति नियुक्त किये जाने का वृत्तान्त है ।