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वर्णन किया गया है। सं० १३०० वि की केवि देल्हण कृत सुकुमतेरास’ है जिसमें भगवान कृष्ण के लघु सहोदर भ्रातः गज सुमाल मुनि क; चरित्र ३४ छन्दों में वर्णित है । जीबश्वर का मुहावलिासा भी इनके साथ वेचनीय है ।। | गुजराती में गिरनार रास, जंबू रस और आबू रास' का उल्लेख श्री चिनलाल द लाल ने किया है, जिनके साथ यौविजय कृत *द्रव्यगुणपर्यवसा’४ तथा सं० १७३७ वि० रचित ज्ञानविमल सूरि कृत जंबू कुमार रास भी गणनीय हैं। । बारहवीं यौर पन्द्रहवीं शताब्दी के बीच में रचे गये जम्बू स्वामी रास’’ रेवंतगिरि रास’, ‘कछुली रास्’, गोतम रास’, ‘दशाभद्र रास', “वस्तुपाल तेजपाल रास', 'श्रेणिक रास', 'पेथड़ रास’ और ‘समर सिंह रास’ भी विचारणीय हैं । सत्रहवीं शताब्दी और उसके बाद रचित गिल के अनेक रस-काव्यों को प्रकाश में लाने का श्रेय पं० मोतीलाल मेनारिया, श्री अनारचंद नाहटा, पं. नरोत्तम स्वामी और डॉ० दशरथ शर्मा को हैं । गुर्जरेश्वर कुमारपलि चालुक्य के युद्ध आदि का वर्णन करने वाल; जैन ऋषभदास रचित 'कुमारपाल राजर्षि रस या कुमार पाल रास' ६ सं० १६१७ वि० की कृति है। दधवाड़िया चारण माधौदास का राम की कथा बर्णन करने वाला रामरासौ सं० १६३०-६० वि० के बीच की रचना है । इगर सी के ‘शत्रुसाल ( छत्रसाल) रास' ८ को मेनारिया जी सं० १७१० वि० के आस-पास रखते हैं । गिरधर चारण के सगतसिंह रासो'९ का काल १. राजस्थान भारती, भाग ३, अंक २, जुलाई १६५१ ई० ; १० ७-६१ ; ३. जैन सिद्धान्त भास्कर, वर्ष ११, अंक १ ; ३. प्राचीन गुर्जर काव्य संग्रह ; ४. जैन साहित्य और इतिहास, पं० नाथूराम प्रेमी, पृ० १६६ ; ५, टाँड-संग्रह, जर्नल अव दि रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ( ग्रेट ब्रिटेन ), भाग ३, अप्रैल १९४० ३०; ६. वही, हस्तलिखित ग्रन्थ संख्या ३१; ५७, राजस्थानी भाषा और साहित्य, पं. मोतीलाल मेनरिया, पृ० १४३; ८, वही, पृ० १५८; ६, वही, पृ० १६०;