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६० १७२० वि के लगभग निश्चित किया गया है। मेवाड़ के नरेशों की वन करने वाला जैन दौलत विजय ( दुलपति विजय) कृत बुसान रासी मेनारिया जी के अनुसार सं० १९६७-६० वि० की रचना है। सं० १६६१ वि० का सुमतिहँस विचित प्रेमाख्यानके काव्य *विनोद रस २ और एक जैन कथा वर्णन करने वाला उन्नीसवीं इताब्दी के श्रीपाल रास' भी उल्लेखनीय हैं । ब्रािल में गंभीर रस-काव्यों के अतिरिक़ व्यंग्य भावात्मक रास-काव्य भी रचे गये, जिनका श्रेय ॐन कवियों को है । कवि काह्न १ कीर्ति सुन्दर ) का माकड़ रासो'३ (खटमल रास ) ऐसी ही रचनाओं में से एक है । श्री अगर चंद नाहटा ने ऐसी ही हास्यात्मक रचनाओं में अंदर रासो', खीचड़ स’, और धर रासो' की भी चर्चा की है।* पिंगल (राजस्थानी व्रजभाषा) में भी अनेक रासो-काव्य रचे गये हैं । प्रबल जनश्रुति पर आधारित तथा प्राकृत पैङ्गलम्' द्वारा पुष्ट शार्ङ्गधर रचित रणथम्भौर के हुतात्मा शासक इम्भीर देचौहान को कीति-गायक “हम्मीर रासो'; महोबा के अधिपति परमर्दिदेव चंदेल उपनाम परमाल के यश सम्वन्धी अज्ञात कवि की रचनः परमाल रसो५; करोली राज्य का इतिहास बताने वाला, नल्लसिंह भइ रक्षित त्रिपाल रासो'६ जिसका रचनाकाल मिश्रबंधु सं० १३५५ वि०, नाहटा जी १८ वीं या १६ वीं शती और मेनारिया जी सं० १६०० वि० बतलाते हैं; न्यामत खाँ उर्फ ज्ञान कवि को पितृवृई वर्णन करने वाला, सुं० १६६१ वि० में रचित 'कायम रासा' या दान अलिक खान रासा’७, रतलाम के महाराजा रतन सिंह के युद्धादि का परिचय देने वाला साँइ चारण कुंभकर्ण का सं० १७३३ बि० में रचित रतन १. खुमाणे रासौ, ना० प्र० प०, वर्ष ५७, अंक ४, सं० २००६, दि०, | पृ. ३५०-५६ ; २. राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ० १४४ ; ३. राजस्थान भारती, भाग ३, अंक ३-४, सन् १९५३ ६० ; | पृ० ६७-१०० ; ४. वहीं, १० ६७; ५. नागरी प्रचारिणी ग्रंथ मलि २३, सन् १६ १६ ई०; ६, मिश्रबंधु-विनोद, प्रथम भाग, तृतीय संस्करण, पृ० १६७; राजस्थान | का पिंगल साहित्य, पं० मोतीलाल मेनारिया, पृ० ५३-५५; ७, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क.१, १६४६ ई०, पृ० ३६-४६;