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राम किसन किती सरस ? कहत लगे वहु वार ।। छुच्छ व कवि चंद की । सिर चहुयाना भार ।। ३,५५; इसके बाद योगिनिपुर-सम्राट की कथा बे रोक-टोक बढ़ चलती है ।। भारत की अनेक प्राचीन कथानक-रूढ़ियाँ साहित्य में प्रयुक्त हुई हैं। उन पर विशद रूप से विचार करके, उनके मूल स्रोतों के अनुसन्धान का प्रयत्न करने वाले विदेशी विद्वानों में बेनफे (Benfey), कोलर (SGh!er), लिञ ट (Liebrecht), कुन (Kuhn), हट्टेल (Hertel,), मारिस ब्लूमफील्ड (Maurice Bloomfield), grafi (Tawney), üst (Penzer) regia नाम चिरस्मरणीय रहेंगे। पृथ्वीराज रासों में भी हमें इन प्राचीन कथा-सूत्रों के दर्शन होते हैं। उनमें से कुछ पर हम यहाँ विचार करेंगे । शुकी है। कथा के श्रोता र वक्ता रूप में उपस्थित किया, जाना एक ऐसा ही लूत्र हैं । महाभारत के राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत् सुनाने वाले व्यास के परम ज्ञानी पुत्र का नाम शुकदेव था ही अस्तु मानव की बोली समझने और बोलने की क्षमता रखने वाले शुक को भी कविकल्पना ने ज्ञानी बना दिया। पुराणों में कश्यप की पत्नी ( कहीं पुत्री ) शुकी ही शुकों की अादि माता हैं तब इन दौहित्र पक्षियों को मानव के रहस्यों का जानकार होने में कवि कैसे सन्देह करता । शुक जब मानव की बोली का । अनुकरण कर लेता है तब ऋठवीं शताब्दी के मंडन मिश्र के भवन में मानवीय ज्ञान-सम्पन्न शुकीस्वत: प्रमाणं फ्त; अनाश्रादि दार्शनिक विचारात्मक उया. रण क्यों न करे । १ और बाण का वैशम्पायन शुक जब पूर्व जन्म की कथायें कह सकता है तब रासो कोयुको को जिज्ञासा-पूर्ति हेतु क्या वह वहुज्ञ, पृथ्वीराज के जीवन में घटनेवाली कुथाशों का वर्णन भी नहीं कर सकता ? बंद के घरवती विद्यापति ने अपने चार पल्लव’ वाले अबहकाव्य १. स्वत: प्रमाणे परतः प्रमाण कीरङ्गना यत्र गिरं गिरन्ति । द्वारस्थनीडान्तरसंनिरूद्धा जानीहि तन्मण्डनपण्डितौकः ।।६ फलप्रदं कर्म फलप्रदजः कीराङ्गन यत्र गिर गिरन्ति । द्वारस्थनीडान्तरसंनिरुद्धा जामीहि तन्मण्डनंपण्डितक: ।।७ जगद्ध व स्याज्जगद्ध व स्यात् कीराङ्गना यत्र भिर भिरन्ति । द्वारस्थनीडन्तरसंनिरुद्धा जानीहि तन्मण्डनपरिडतकः ।।८,सर्ग:८; वैशम्पायनस्तु स्वयमुपजातकुतूहलेन सबहुमानमवनिपतिना वृध्ठो मुहुर्तमि ध्यात्वा सादरमब्रवीत्-----देव, महतीयू कथा । यदि कौतुकभाकरर्यताम्--, कादम्बरी, पूर्वभाग: ;