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को सूत्रपात, प्रधान मंत्री कैमास के यश्च द्वारा कराने वाली शाबू के परमार राजा की पुत्री, रास की महारानी ईछिनी शीर पद्मावती संभवत: एक ही रही हो । उनकः पृथक्करण उस समय हुअा हैगा जय चारण और भाट चौहान इतिहास को अंशत: भूल चुके थे। इसी से उन्हें इच्छनी को अबू के राजा सतख की पुत्री और जैत परमार की बहन बनना पड़ा, यद्यपि पृथ्वीर!ज की गद्दी नशीनी से लगाकर उसकी मृत्यु के बहुत पीछे तक अबू का राजा ( प्रहलादेन था पाहल का बड़ा भाई ) धारावर्ष था; शोर शायद इसी से पूर्व दिशा में उन्हें समुद्रशिखर नाम के एक ऐसे दुर्ग की कल्पना करनी पड़ी, जिसके विषय में इतिहास कुछ नहीं जानता।""सुए क क । प्रचलित लोका. ख्यानों, कल्कि पुराण, जायसी के पद्मावत से भले ही ली गई हो परन्तु पद्मावती स्वयं कल्पित न थीसाहित्य की दृष्टि से रासो का ‘पद्मावती समय बहुत सुन्दर है, किन्तु अपने सत्य और असत्य के अविवेच्य संमिश्रण के कारण ऐतिहासिक के लिये यह प्रायः निरर्थक है ।। | इस प्रसंग के उपरान्त शुक-शुकी का वक्ता-श्रोता रूप ‘शशिवृता समय ३५' में देखने को मिलता हैं। जिसमें देवगिरि की राजकुमारी शशिवृता का सौन्दर्य एक नट द्वारा सुनकर पृथ्वीराज उस पर आस हो, उसकी प्रति को देष्टा करते हैं और कामातुर हो उसके विरह में लोन, ऋगया-रत हो जाते हैं, जहाँ वन में एक वाराह का पता बताने वाले बधिक के साथ अपने अतुगामियों सहित ‘तुपक’ : धारी राजा के बयान के बीच में अनायास शुक्री, जुक से कह बैठती है कि दिल्लीश्वर के गन्धर्च विवाह की कहानी सुना : पुच्छ कथा सुक कहो । सुमह गन्नवी सुप्रेमहि ।।. सवन भमि संजोगि । राज समधी सुने सहि ।। •••• •••••••" । इम चिंतिय मन मझिक ।। के करौ पति जुग्गनि ईसह । ईस पुज्जै सु जग्गीसह ।। शुक चिति बाल अति लघु सुनुत । ततविन विस उपजै तिहि || देव सभा न जदुई न्नपति । नाल केर दुज अनुसरहि ।। ६८, . और इसके बाद ही शशिवृता के पास दया-भाव से आने वाले एक हंस रूपी १. वही, पृ० २८ ; २. ॐ० ६७ में ग्रह करि तुपक सुराज' चरण का तुपक (बन्दूक)शब्द उक्त शब्द या सम्पूर्ण छन्द के प्रवर्ती प्रक्षेप होने का सूचक है । इसी प्रकार पिछले छः ५२ में बन्दूक' शब्द का प्रयोग है : सर नाक बंदूक । हरित जन बसन विरब्जिय ।