पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१७२)

________________

तथा चौहान द्वारा अप्सरा के शशिवत रूप में अवतार लेने का कारण पूछने पर ( छं० १५३ }, उसने अप और शिब वरदान की बात कही। ( ॐ० १५५-६१ } और यह भी बता दिया कि शिव की वाणी के अनुसार बह आपको १ अवश्य } प्राप्त करेगी : तुछ दिन अंतर क्रलियं । आगम भरतार यामि उद्ध लोकं ।। फिर अच्छरि अवतारं ! पांमैं तुझझ ईस बर बनीं ।। १६२, फिर आगे कहा कि इस मॅनका का अवतार आपके लिये ही हुआ है : और सुर संकेत लुनि । हंस कहै नर राज ।। सेन केस अवतार इह ! तुझे कारन केहि साञ्ज ।। १६४ | इस अवसर पर शशिवृता की मैंगनी केमधज्ज को दी जाने, उसके दिल्लीश्वर के गुणों में अनुरक्त होने, शिव-पूजन करने और शिव की अज्ञः से ही स्वयं उन्हें बुलाने आने की बात हंस एक बार फिर दोहरा गया ( छं० १६५-६८, तथा : |चढ़न कहिथ राजन सो हेर्स । उडिड च दक्षिण तुम देस ।।१६६)। | इस वन से प्रतीत होता है कि पृथ्वीराज को देवगिरि ले जाने के लिये हंसे दूत को अथक परिश्रम करना पड़ा था । यद्यपि प्रस्तुत प्रस्ताव के प्रारम्भ में वे शशिता के प्रति अतिशय कामासक्त चित्रित किये गये हैं फिर भी समुद्रशिखर की पद्मावती और कन्नौज की संयोगिता को जाने के समन इस स्थल' विशेष पर जो चे अपेक्षाकृत कम व्यअ दिखाई देते हैं, इसके कई । कारण भी हैं । परन्तु अन्ततः प्रेम-घटक हे स दूत सफल हुशा और दिल्लीश्वर ने दस सहस्त्र अश्वारोही सैनिकों को सुसज्जित किये जाने की आज्ञा दे दी ; | सुनत अवन चढ्यौ नृप राज । कहि-कहि दूत दुजन सिरताजं ।। १६६ | भय अनुराग राज दिल्ली बैं । दस सहस्त्र सज्जी नूप हेबै !! १७०, तथा हंस से देवगिरि के राजा का वृत्तान्त पूछा ( छं० १७१ }। उसने भानु यादव के धन, ऐश्वर्य, बेल, प्रताप, सेना, पुन्न, पुत्रियों आदि का विधिवत् उल्लेख कर के (छं०. १७२०७४, इसी प्रसंग के साथ बतलाया कि देवगिरि के अानन्दचन्द्र की कोट-हिसार में विवाहित, गान अदि विद्याओं में पारंगत, इस समय विधवा और अपने भाई के साथ रहने वाली बहिन (छं० १७५-७६) तथा अपनी शिक्षिका के मुंह से श्रापके पराक्रम आदि का वृत्त सन कर शशिवृता आप में अनुरक्त हो गई और आपकी प्राप्ति का प्रण कर बैठी : । १, परन्तु यहाँ पूर्वं वर्णित चित्ररेखा के स्थान पर रम्भा आ जाती है ।