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से किसके मुंह से उनका नाम नहीं निकला है और सुरत में नल के स्वरूप में अपने पति का ध्यान करके किसने अपने काम को जागृत नहीं किया ११ : न का निशि स्वग्नगते देश से जगाद गोत्रस्खलिते च का न तम् । तदात्मताथ्यातधबा रते चं का चकार वा ना स्वमनोभवोद्भवम् ।। ३८, सर्ग १; और आगे वे लिखते हैं-दमयन्ती, इच्छा से पति बनाये हुए नल को निद्रा में किस राभि में नहीं देखती थी १ वन्न अइष्ट वस्तु को भी भाग्य से दृष्टिगोचर कर देता है : निमीलितादक्षियुगाचे निद्रया हृदोऽपि बाह्येन्द्रियमौनमुद्रितात् । अदशि संगोप्य कदाप्यवीक्षितो रहस्यमस्या: 6 महन्महीपतिः ।। ४०, वही; | स्वप्न में देखे हुए प्रिय की बहुधा प्राप्ति ने स्वप्न में भय दर्शन को कालान्तर में एक कथा-सूत्र बना दिया । श्रीमद्भागवतु' में बलि के औरस पुत्र, शंकर के परम भक्त, शोणितपुर के शासक वाणासुर के-ऊषा नाम की एक कल्यी थी । कुमारावस्था में उसने स्वयकाल में, अदृश्य और अश्रुत प्रद्युम्न के कुमार परम सुन्दर अनिरुद्ध से रति-सुख प्राप्त किया । फिर अचानक उन्हें न देखने पर ऊषा---'हे प्रिय, तुम कहाँ हो' इस प्रकार कहती हुई अति व्याकुल हो उठ बैठी और अपने को सखियों के बीच में देखकर अति लज्जित हुई' : तस्योपा नास दुहिता स्वप्न प्रद्युम्नना र तिम् ।। कन्यालभत कान्तेन प्रागदृष्टश्रुतेन सः ।। १२ सुः तत्र तम पश्यन्त झासिः कन्तति वादिनी । सखीनां मध्य उत्तस्थौ विह्वल ब्रीडिता भृशम. ।। १०-६३-१३; दमयन्ती को नल मिले और ऊषा को अनिरुद्ध । इसी प्रकार साहित्य में स्वप्न, प्रिय द्वारा प्रिया और प्रिया द्वारा प्रिय की प्राप्ति की योजना का एक शिसु हो गया । पृथ्वीराज-रासो' में अनेक स्वप्नों का उल्लेख है परन्तु एक स्थल पर अदृश्य प्रिया को निद्राकाल में देखने के उपरान्त प्रिय को उसकी प्राप्ति स्वग्न-दर्शन-कथा-सूत्र से आलोकित है। नारी यदि स्वप्न में देखे हुए पुरुष को प्राप्त कर सकती है तो पुरुष को स्वप्न में देखी हुई नारी की प्राप्ति से कवि कैसे वञ्चित कर सर्व . रासो के हंसावती विवाह नाम प्रस्ताव ३६' में रणथम्भौर के राजा