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( १८० } *पृथ्वीराज रासो' में आई हुई लिङ्ग-परिवर्तन विषयक कथा, शिखंडी की कथा से मिलती-जुलती है, अस्तु हम पहले 6 महाभारत' को कशा पर हुष्टि. मात् करेंगे । इस ‘इतिहास-काव्य' के अादि-पर्व में काश-नरेश की कन्या अम्बा, भीष्म द्वारा अपहृत होने पर शाल्व को प्रतिरूप में पूर्व ही स्वीकार किये जाने का आग्रह दिखाकर, इच्छानुसार जाने की अनुमति पा जाती है । उद्योग-पत्र में हम उसे शाल्व द्वारा तिरस्कृत, उसके लिये भीम से युद्ध में परशुराम की पराजय, भीष्म के वध हेतु उसकी तपस्या, अपने आधे शरीर से नदी और आधे से वत्सराज की कन्या-रूप में उसका जन्म, उसकी पुनः तपस्या और अगले जन्म में भष्म का वध करने का उसे शंकर द्वारा वरदान का बर्णन पाते हैं । इसी पर्व में पढ़ते हैं कि पुत्र के लिये तप करने वाले राजा द्र पद को शंकर ने वर दिया कि तुम्हारे एक कन्या पैदा होगी जो बाद में पुरुष हो जायगी । समयानुसार द्रुपद के शिखंडी नाम की कन्या हुई परन्तु पुत्र कह कर उसकी प्रसिद्धि की गई। वयस्क होने पर, शिव के वर से शाश्वस्त राजा ने दश-कुमारी से उसका विवाह कर दिया। तब रहस्य लुत गया और अपमान का प्रतिशोध लेने के लिये दशा में पांचाल पर चढ़ाई की जाने की योजना प्रारम्भ हो गई ! माता-पिता पर विपत्ति देखकर शिवंडी वन में चली गई और वहाँ बहुत समय तक निराहार रहकर उसने अपनी शरीर सुखा डाला, तब एक दिन स्थूणाकर्ण नामक यह उस पर द्रवीभूत हुआ और उसने उसके स्वसुर हिरण्यवर्मा द्वार! उसकी परीक्षा तक, उसे अपना पुरुषत्व देकर उसका स्त्रीत्र ले लिया । इस आदान-प्रदान के बाद शिखंडी पांचाल लौट आया। इसी बीच स्थणाकर्ण को कुबेर ने शिखंडी की मृत्यु तक स्त्री बने रहने का श्राप दे दिया । परीक्षा में शिखंडी पुरुष सिद्ध हुआ और युद्ध की विभीषिका समाप्त हो गई । तदुपरान्त स्थूणाकर्ण का पुरुषल्व लौटने वह वन में गया और वह झजवन पुरुष बने रहने का प्रसाद' पाकर हर्ष से तौट आया ! यह वृत्तान्त बताकर भीष्म ने दुर्योधन से कहा-द्रोण से उसने भी शिक्षा पाई हैं, दुपद का यह पुत्र महारथी शिखंडी पहले ली था पीछे पुरुष हो गया है, काशिराज. की ज्येष्ठ कन्या अम्बा' ही द्रुपद कुलोत्पन्न शिखंडी है, यह यदि धनुष लेकर युद्ध के लिये उपस्थित होगा तो मैं क्षण भर भी इसकी और न देखेंगा और न शस्त्र ही छोड़ गा; हे कुरुनन्दन, मेरा यह त्रत पृथ्वी पर विश्रुत है कि स्त्री, पूर्व स्त्री, स्त्री-नाम, और स्त्री-स्वरूप वाले पर मैं बाणे, नहीं छोड़ता, इस कारण मैं शिखंडी पर भी प्रहार नहीं