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अाचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ० रामकुमार बम और पं० मोतीलाल मेनारिया ने रास को जाली और अनैतिहासिक माना । मुनिराज जिनविजय४ ने पृथ्वीराज और जयचन्द्र सम्बन्धी चार झपन्न छन्दों की खोज प्रकाशित कर, चंद बलर्दिक ( बरदिया<वरदाश्री ) द्वारा अपना भूल ग्रन्थ अपभ्रंश में लिखने की अशा प्रक्रट करके इस क्षेत्र में फिर गर्मी पैदा कर दी। डॉ० दशरथ शर्मा ने अथक परिश्रम करके दिइयक अनेक तथ्यों की


--- १. हिंदी-साहित्य का इतिहास, ( सं० २००३ वि० ), पृ० ४४ ; २. हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, (द्वितीय संस्करण ), पु० ३, राजस्थान का पिंगल साहित्य, पृ० ५३, सन् १८५२ ई० ; ४. पुरातने प्रबन्ध संग्रह, भूमिका, पृ० ८-१०, सं० १६६२ वि० { सन् | १६३५ ई० ); ५. नृथ्वीराज रासो की एक प्राचीन प्रति और उसकी प्रामाणिकता, ना प्र० प्र०, कार्तिक सं० १९९६ बि ( सन् १९६६ ई० ); अग्निर्देशियों और पहलबादि की उत्पत्ति कथा में समता, राजस्थानी, भाग ३, अङ्क २, अक्टूबर १९३९ ३०; पृथ्वीराज रासो की कथा का ऐतिहासिक अाधार, राजस्थानी, भाग ३, अङ्क ३, जनवरी १९४० ई०; दि एज ऐंड हिलारीसिटी अव पृथ्वीराज रास, इंडियन हिस्टारिकल क्वार्टली, जिल्द १६, दिसम्वर १६४० ई०, तथा वही, जिन्द, १८, सन् १९४२ ई०; सुजेन चरित्र महाकाव्य, ना० प्र० ए०, सं० १९९८ वि० ( सन् १६४१ ई०) ; पृथ्वीराज रासो संबंधी कुछ विचार, वीणा, अप्रैल सन् १९४४ ई० ; चरलू के शिलालेख, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क १, अप्रैल सन् १९४६ ई० ; दि रिजिनल पृथ्वीराज रासो ऐन अपभ्रंश वर्क, बही; संयोगिता, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क २-३, जुलाईअक्टूबर सन् १६४६ ई० ; चन्द्रावती एवं अाबू के देवड़े चौहान, बही, भारा १, अङ्क ४, जनवरी सन् १९४७३० । पृथ्वीराज रासो की आषा, बही, भारः १, अङ्क ४; पृथ्वीराज रासो की ऐतिहासिकता पर प्रे० महमूद खाँ शीरान के क्षेप, वहीं, भाग २, अङ्क १, जुलाई सन् १९४८ ६० ; कुमारपाल चालुक्य का शाकंभरी के अर्णोराज के साथ युद्ध, यही, भाग २, अङ्क २, मार्च १६४६ ३०: राजस्थान के नगर एवं ग्राम ( भारहवीं- तेरहवीं-झाक्षाब्दी के लगभग ), वही; भाग ३, अङ्क १, अप्रैल