पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२०१)

________________

चरित' में छाबू कै ऋऋषि वशिष्ठ के अग्नि-कुड से एक चोर पुरुष की उत्पत्ति की कथा ही है जो विश्वामित्र के पक्ष को परास्त कर, ऋग्निवर की अपहृत नन्दिनी राय लौटा लाया था, और इस पराक्रम के फलस्वरूप उसे परमार अर्थात् शत्रु-हन्ता नाम मिला था। बाल्मीकि-रामायण' के सर्ग ५४ और ५५ में विश्वामित्र द्वारा वशिरुठ की कामधेनु हरण, वशिष्ठ की आज्ञा से उसके द्वारा पह्नवों और शक की सृष्टि तथा विश्वामित्र की सेना के संहार का विवरण मिलता है । अग्नि-वंशियों की उत्पत्ति का स्रोत रामायण की यही कथा प्रतीत होती है । डॉ० दशरथ शर्मा का कथन उचित ही हैं--- ६.अाज से हजारों वर्ष पूर्व जळू शकादि की उत्पत्ति का समझना ऐवं समझान आवश्यक हुआ तब वशिष्ठ एवं कामधेनु की कथा की कल्पना की आवश्यकता हुई । लगभग एक हजार वर्ष बाद जव ह्मवादि भारतीय जन समाज के अंग बन गये और परमारादि कई अन्य जातियों की उत्पत्ति को समझना समझाना आवश्यक हुआ तब इन जातियों के असली इतिहास को न जानते हुए कई कवियों ने उसी पुराने रामायण के कथानक का सहार लिया और केवल जातियों का नाम बदल और इतस्ततः थोड़ा बहुत फेरफार कर 'परमारादि की उत्पत्ति कथा हम के सामने रखी १३ | ग्वालियर के सन् ८४३ ई० के प्रतिहार राजा भोजदेव की प्रशस्ति, दसवीं शती के राजशेखर द्वारा भोज के पुत्र महेन्द्रपाल का रघुकुलतिलक और उसके पुत्र झा रघुवंशभुक्तामणि' वन तथा शेखावटी ले हर्षनाथ के भन्दिर की चौहान विश्नहराज की सन् १८३ ३७ की प्रशस्ति मैं कन्नौज के १. ब्रह्माण्डमण्डपस्तम्भ: श्रीमानस्त्यबुदो गिरिः ।। ४६ : लतः क्षणात् सौदण्डः किरीटी काञ्चनाङ्दः । उज्जगमारिनतः कोऽपि है मकवचः पुमान् ।। ६८ दूरं संतमसेनेव विश्वामित्रेण सा हृता । लेनानिये भुनेधेनर्दिनीरिय भानुना ।। ६६ परमार इति प्रापत् स भुनेन इर्थिवत् ।।"}}७१, सर्ग १५ ; २. अग्निवंशियों और पह्नवादि की उत्पत्ति की कथा में समानता, राज स्थानी, भाग ३, अङ्क २, पृ॰ ५५ ; ३, अर्कोलाजिकले सधैं अब इंडिया, वार्षिक रिपोर्ड, सन् १६०३ ४ ३०, पु० २८० ; ४. १-११, सभारत : ५, इंडियन ऐन्टीक्वैरी, जिल्द ४२, पृ० ५८५६ ;