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रचित खरतरगच्छपट्टवल' के आधार पर सं ० १२२३ वि० के दिल्ली के राजा मदनपाल और अनंगपाल नान एक ही व्यक्ति के स्वीकार करते हुए लिखते हैं---‘जब कि उपरोक्त प्रमाणों से और लोक प्रसिद्धि से अनंगपाल हँवर का उस समय होना सिद्ध होता है तो उसकी पुत्री कमल से पृथ्वीराज के पिता सोमेश्वर का विवाह होने में कोई शक नहीं होनी चाहिये और बहु विवाह की प्रथा होने से कपूरदेवी भी सोमेश्वर की रानी रही हो और विमाता होने से उसको भी पृथ्वीराज की माता लिखा गया हो यह संभव है। पृथ्वीराज विषयक अन्य पुस्तकादि ( पृथ्वीराजविजय और हम्मीरमहाकाव्य ) में लिखे गये उसके जीवन वृतान्त पर खूब सोचने से पृथ्वीराज का जन्झ रात में लिखे अनुसार दि० सं० १२८५-६ में होना ही मानना पड़ता है । परन्तु विद्वानों ( झा जी ) ने सोमेश्वर का विवाह करदेवी के साथ वि० सं० १२१८ के बाद होना माना है अत: पृथ्वीराज का कर्पूर-देवी के गर्भ से उत्पन्न होना संभव नहीं है '५ ।। समर सिंह या सामंतसिंह रास की ऐतिहासिकता की परीक्षा के लिये हर्षनाथ के मन्दिर की प्रशस्ति, बिजोलियाँ का शिलालेख, पृथ्वीराजविजय, प्रवन्धकोष, हम्मीरमहाकाव्य और सुर्जनचरित्र आदि प्रमाण-साक्ष्य में लाये जाने वालों में से किसी में भी पृथ्वीराज की बहिन का उल्लेख नहीं मिलता है। इस के अनुसार दिल्ली के अनंगपाल तोमर की कन्या कमला और अजमेर-नरेश सोमेश्वर के विवाह से उत्पन्न पुथा, पृथ्वीराज की सगी बहिन थी, जिसका विवाह चित्तौड़ के रावल समरसिंह के साथ हुआ था। चित्रकोट रावर नरिंद । सा सिध तुल्य बल ।। सोमेसर संभरिय । राव मानिक सुभरग कुल ।। मुद्र में श्री कैमास | पनि अवलं वन मंडिय 1} भास जेठ तेरसि सु मधि । ऐन उत्तर दिसि हिडिय }} सुक्रवार सुझल तेरसि बरह । धर लिन्नौं तिन बर घरह ।। सुकलंक लगन मेवार घर ! समर लिय रावर बरह ।। २१-१ सत्ताइसवें समय में हम विषम मेवाड़पति को पृथ्वीराज के पक्ष से सुलतान गरी की सेना पर भयङ्कर आक्रमण करते हुए पाते हैं : १. पृथ्वीराज रालो पर पुनर्विचार, राजस्थान-भारती, भाग १, अङ्क २. ३, सन् १६४६ ई०, पृ० ४३-४४ ; २. थायाह कुधा, सं० २१ ;