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{ २१४ } से हुई है । इँगरपुर के ख्यात में पृथाबाई के संबंध समतसी से बतलाया भी गया है । और उन्होंने फिर अनुमान किया---'समतसी और समरसी के नामों में थोड़ा सा ही अंतर हैं इसलिये संभव है कि पृथ्वीराज रासौ के कतई ने ससतसी को समरसी मान लिया हौ । दाड़ का राज्य छुट जाने के पश्चात् समंतसिंह कहाँ गया इसका पता नहीं चलता ! यदि वह पृथ्वीराज का बहनोई माना जाये तो बागड़ का राज्य छूट जाने पर संभव है। कि वह अपने साले पथ्वीराज के चाल चला गया हो और शहाबुद्दीन गरी के साथ की लड़ाई में मारा गया हो'३ । राजस्थान के अन्य इतिहासवेत्ता जगदीशसिंह गहलोत ने भी उपयुका अनुमान की पुष्टि की है ।। । जैसा मैंने अपनी पूर्व पुस्तक में दिखलाया था तथा प्रस्तुत पुस्तक में विस्तार से विवेचना करते हुए सूचना दी है कि रासो के पृथ्वीराज (तृतीय) की बहिन पृथा से विवाह करने वाला, उनका समकालीन चिौड़ का सामंतसिंह (ससे तुसी) था जिसके नाम का रूप लिपिक के अज्ञानवश समरहि यो समरस हो गया है। बड़ी लड़ाई से प्रस्ताव ६६' के छन्द ६, जिसमें कुम्भकर्ण के बीदर जाने का उल्लेख है, परवर्ती प्रप हो सकता है। इस छन्द को हटा देने से कथा के प्रवाह में कोई बाधा नहीं पड़ती । और रास के उन स्थलों पर जहाँ ‘सुभरसिंघ' या 'समर' प्रयुक्त हुअा है, क्रमश: समतसिंघ' और 'समत' कर देने पर छन्द की गति भी अङ्ग नहीं होती । रातो में कई-कहीं समर सिंह के सश्न पर सामंतसिंह भी प्रयुक्त हुअा है, यथा---- सामंत सिंह राबर चवै । सुगति मुगति लम्भे तुरत ।।६६-६५३ | पृथ्वीराज के विवाह रासो के विवाह सम्यो ६५,' में पृथ्वीराज के चौदह विवाहों को निम्नउल्लेख मिलता है : प्रथम पनि परिहारि । राइ नाहर की जाइये ।। जा पाछै इंछनीय । सलप की सुता बताइये ।। १. उदयपुर राज्य का इतिहास, पहली जिल्द, पृ० १५४; सन् १९३१६०, २. डूगरपुर राज्य का इतिहास, पृ० ५३; सन् १६३६ ई० ; ३. राजपूताना का इतिहास, पृ० १६.८ ; सन् १९३७ ई०; ४. चंद वरदायी और उनकी काव्य, पृ० २७ ; ५. रेवतिट, भाग २, पृ० ६-६६ ;