पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(२१५)

जा पाछै दाहिमी । राय डाहर की कन्या ।। राय कुअरि अति रीत। सुता हमीर सु मन्या || राम साह की नंदिनी । बजरि वानी बरनि । ता पाछै पदमावती । जादवनी जोरी पनि ॥१ रायधन की कुअरि । दुति जमुगारी सुकहिये । कछवाही पज्जूनि ।मात बलिभद्र सुलहिये । जा पाछै पुडीरि । चंद नंदनी सु गायव ।। ससि बरना सुदरी। अबर हंसावति पायव ।। देवासी सोलंकनी । सारंग की पुत्री प्रगट पंगानी संजोगता ।इतें राज महिला सुपट ॥२ इससे अागे आगामी छन्द ३.१२ तक इन विवाहों में पृथ्वीराज की श्रवस्था का वर्णन इस प्रकार किया गया है - ग्बारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने नाहरराय परिहार को युद्ध में मारकर उसकी कन्या से 'पुहकर' (पुष्कर ) में विवाह किया, बारह वर्ष की आयु में बाबू-दुर्ग को तोडने वाले चालुक्य को परास्त करके सलख की पुत्री और बाबू की राजकुमारी इंच्छिनी से परिणय किया, उनके तेरहवें वर्ष में चामंडराय ने बड़े उत्साह से अपनी वहिन दाहिमी उन्हें व्याह दी, चौदहवें वर्ष हाहुलीराय हमीर ने अपनी कन्या का तिलक भेज कर उनके साथ विवाह कर दिया, पन्द्रह वर्ष की अवस्था में वीर चौहान ने अत्यंत माहीर ( गम्भीर ) बड़गूजरी को व्याहा और इसी वर्ष अत्यन्त हित मानते हुए उन्होंने रामसाहि की पत्री से भी विवाह कर लिया, सोलह वर्ष की अवस्था में उन्होंने पूर्व दिशा के समुद्र- शिखरगढ़ के यादव राजा की कन्या पद्मावती को प्राप्त किया, सत्रहवें वर्ष वे गिरदेव' पर गर्जन करके रामधन की पुत्री ले आये, अठारहवें वर्ष उन्होंने वीर बलभद्र कछवाह को बहिन पज्जूनी का पाणिग्रहण किया, उन्नीस वर्ष की अवस्था में वे चंद पुंडीर की चन्द्रवदनी कुमारी पुंडीरनी से उपयमित हुए, बीस वर्ष की आयु में ( देवगिरि की) शशिवृता को ले आये, इक्कीसवें वर्ष में संभर-नरेश ने ( रणथम्भौर की) हंसावती से परिणय किया, वाइसवें वर्ष - १. रासोसार, पृ० ३८२ पर गिरदेव' का शब्द-विपर्यय करके देवगिरि लिखा गया है, जो मेरे अनुमान से उचित नहीं है। देवगिरि की कुमारी शाशिवृता भी पृथ्वीराज से विवाहित हुई हैं अस्तु 'गिरदेव को देवगिरि' मानने में समस्या उलझती ही है सुलझती नहीं।