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१ वि सं० १२८७ } की इस्ट में बुरेश्वर कुमारपाल द्वारा सपादलक्ष या शाकम्भरी-नरेश अराज को परास्त कर के उनके पक्ष में चले जाने वाले अपने काबू के सात विक्रम परमार के गद्दी से उतार कर उसके भतीजे यशवबल को वहाँ का अधिपति बनाने का उल्लेख करके, आबू के जारी गाँव के कमारपाल की इस्ति रचक सन् ११४५ ई० (१ वि० सं० १२०२ ) के लेख, सिरोही राज्य के कार्यद्रा ग्राम के उपकराठ में काशी विश्वेश्वर के मन्दिर के सन् ११६३ ई० ( वि० सं० १९९० ) के यशोधवल परमार के पुत्र धाराव के शिलालेख और ताज-उल-स झालर' उल्लिखित सन् ११६७ ३० ( वि० सं० १२५४ ) में व सरो अर्थात् कतुबुद्दीन ऐबक द्वारा अन्हलवाड़ा पर आक्रमणु-काल में गुजरात के रायकर्ण र धारावर्ष (रसार ) सामंतों के युद्ध करने का विवरण देकर सिद्ध किया है कि पृथ्वीराज के समय में ग्राबू पर गुर्जरेश्वर द्वारा नियुक्त परमार जातीय सामंतों का अधिपत्य था ।३ ओझा जी धारवर्ष के चौदह शिलालेखों और एक ताम्रपत्र का उल्लेख करते हुए इनमें से राजपूताना म्यूजियम में सुरक्षित वि० सं० १२२० ज्येष्ठ सुदि १५४, वि० सं० १२६५, १२७१ र १२७४५ के शिलालेखों के प्रमाण पर पृथ्वीराज के सिंहासनारूढ़ होने के पूर्व से लगाकर उनको मृत्यु के बहुत पीछे तक अबू पर धारावर्प (परमार) का ही शासन निश्चित करते हैं, जैत में सलख का नहीं । ६ जो कुछ भी हो प्रधान मंत्री कैलास का वध कराने वाली, संयोगिता के रूप के कारण सपत्नी-द्वेष से राजमहल त्याने का उपक्रम करने वाली रासो की सुन्दरी, आबू की परमार राजकुमारी और बृथ्वीराज की पटरानी इच्छिनी चरित्र-चिञण की दृष्टि से चंद के काव्य की एक अद्भुत प्रतिमा है, जिसको डॉ दशरथ शर्मा ‘कान्हड़ दे प्रबन्ध के १. एपिग्राफ़िया इंडिका, जिल्द ८, पृ० १०८-१३ ; २. राजपूताना म्यूज़ियम अजमेर ; ३, हिस्टारसिटी व दि एपिक, पृथ्वीराज रास, मार्डन रिव्यू; तथा बंद वरदाई का पृथ्वीराज रासो, सरस्वती, मई, सन् १.२६ ई०, पृ० ५५०-६१; ४. इंडियन ऐन्टीक्वैरी, जिल्द ५६, पृ० ५१ ; ५. बही, जिल्द ५६, पृ० ५१ ; ६. पृथ्वीराज रासो का निर्माणकाल, कोषौत्सव स्मारक संग्रह, सन् १६२८, ३०, ० ४५-४६ ;