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{ २२२ । विविध प्रमाणों के आधार पर झनैतिहासिक लिद किये हैं। फिर भी इन पर और अधिक शोध की आवश्यकता है । | पृथ्वीराज की रानी और कान्यकुब्ज की राजकुमारी संयोगिता का उल्लेख नागार्जुन, भदानक जाति, महोबानरेश परमदिदेव चन्देल, गुर्जरेश्वर भीमदेव चालुक्य द्वितीय और अबू के धारावर्ष के साथ चौहान नरेश के इतिहास प्रसिद्ध युद्ध का नाम तक न लेने वाले ‘हम्मीर नहाकाव्य अौर जयचन्द्र को सूर्यवंशी, मल्लदेव का पुत्र, महोबा के मदनवम को उसका झालान स्तम्भ अादि निराधार बातों का वर्णन करने वाली नाटिका ‘२.म्/मंजरी' में यदि नहीं है तो इसमें निराशा की कोई बात नहीं । डॉ० दशरथे शाम का प्रमाण अनुमान उचित हैं कि पृथ्वीराजविजय की तिलोत्तमा शौर सुजनचरित्र' की कान्तिमती ही रासों की संयोगिता है। जिसके कन्नौज से अपहरण का वृत्तान्त अबुल फज़त ने अपनी ‘ाईने-अकबरी' में भी दिया है। संयोगिता विषयक जनश्रुति इतनी प्रबल है कि अभी तक इतिहासज्ञों द्वारा मनोनीत सुलभ साक्ष्यों के अभाव में भी उसे सत्य ही मानना पड़ता है। इनके अतिरिक्त पृथ्वीराज-रास' में प्रयुक्त किय गये संवत्, बंशावली, वीसलदेव विषयक वृत्तान्त, मेवाती मुगल युद्ध, भीमदेव चालुक्य के हाथ से सोमेश्वर-वध, जिसके फलस्वरूप पृथ्वीराज द्वारा भीमदेव-वध, समर सिंह के पुत्र कुम्भा का बीदर जाना, पृथ्वीराज की मृत्यु, अरबी-फारसी शब्दों का व्यवहार आदि कई अनैतिहासिक विवरणों की ओर संकेत किया जाता हैं ! इन पर कोई निर्णय देने लगभः वर्तमान स्थिति में उचित इसलिये नहीं दिखाई देता कि इस समय रासो की चार वाचनाओं की सूचना के साथ ही यह भी ज्ञात हुआ है कि उनमें इतिहास विरोधी अनेक निर्दिष्ट वर्णन नहीं छाये जाते हैं अलु सत्यासत्य विवेचन और रासो-कार्य बढ़ाने के लिये सबसे बड़ी अाव मदनपुर का शिलालेख पृथ्वीराज के चंदेरी और महोबा का स्वामी सिद्ध करता है। अस्तु रास के समय ३६ के पात्र कल्पित हैं। वहीं ऋ० ६७७-७८ ; १. चन्दबरदाई का पृथ्वीराजरास, सरस्वती, सन् १९२६ ३०, संख्या ५, पृ० ५६१-६२, संख्या ६, पृ० ६७६-७८६ ; २. संयोगिता, राजस्थान-भारती, भाग १, अङ्क २-३, शुलाई-अक्टूबर, सन् १६४६ ई० ; ३. (अ) वीसलदेव का चढ़ाई करना आदि नागरी प्रचारिणी सभा की