पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२३९

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।। २७ ।। अथ रेवातः सम्यौ लिष्यते ।। २७ ।। देवगिरि जाते सुभट, आयौ चामंड राइ । जय जय ग्रंप कीरति सकल, कही कञ्चिजन गाइ}} छं० १ । रू० १।। मिलत राज प्रथिराज सों, कहीं राव चमंड ।। रेवातद जो मन करौ, (तौ) 3 वन अयुब गज कुंड ।। छं० २१ रू० २॥ | भावार्थ-रू १----(जब) देवगिरि को जीतकर श्रेष्ठ वीर चामंडराय अयिा (तव) सब कवियों ने राजा (पृथ्वीराज) की कीर्ति का जय गान किया । | रू० २---(तद्पश्चात्) चामंडराय ने महाराज पृथ्वीराज से मिलकर कहा कि यदि आप रेवातट पर चलने की इच्छा करें तो वहाँ वन में अपूर्व हाथियों के झुंड मिलेंगे। शब्दार्थ–रू --देवगिरे देवगिरि = आधुनिक दौलताबाद का नाम था । दौलतावाद, निजाम राज्य में औरंगाबाद के पास और नर्मदा नदी के दक्षिण में १९°५७' अक्षांश उत्तर और ७५°.१५' देशांतर पूर्व में बसा है। [ Hindosta11. Hamilton Yo!, II, p. 147 ] । देवगिरि नाम को नगर भी था और दुर्ग भी। [त्रि० वि०प० में--‘देवगिरि सम्य’ के अनुसार पृथ्वीराज ने देवगिरि के राजा की पुत्री शशित्रुती का अपहरण कर उससे विवाह किया जिसकी राजा जशृचन्द को मॅगनी दी जा चुकी थी। इसके फलस्वरूप पृथ्वीराज के सेनापति चामंडराय की अध्यक्षता में देवगिरि के राजा व जयचंद की संयुक्त सेना से युद्ध हुआ । चामंडराय विजयी हुआ। उसके अनुसार नर्मदा नदी दिल्ली से देवगिरि जानेवाले मार्ग में पड़ती थी जिसे हम भूगोल के अनुसार ठीक पाते हैं । चामंडराय = यह दोहरराय दाहिम का सव से छोटा पुत्र था और पृथ्वीराज का एक वीर सेनापति था । कब्जिन<कविजन= कवि (बहु वचन)। सुभटश्रेष्ठ वीर । (१) न०----थि (२) न ०---आय (३) ना---'तो' नहीं हैं, ड० ह्योर्नले ने अपनी संपादित पुस्तक में ‘तो’ लिखा है।