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कवित “बिन्द ललाट प्रद, कर संकर गजराजं । अँरापति धरि नाम, दियौ चढ़नै सुरराज ।। दानव दल तेहिं गजि रंजि उमया उर अंदर । होइ क्रपाल हस्तिनी संग बगसी रचि संदर' ।। औलादि तासु तन आय कें, रेवातट वन बितरिय । सामन्तनाथ सौं मिलत इप, दाहिस्से कथ उच्चरिथ छं०३। रू०३ । भावार्थ-० ३-६शंकर ने अपने ललाट के प्रस्वेद की बँद से तिलक करके राज की गजराज बना दिया और ऐरापति नाम करण करके उसे सुरराज को सवारी के लिये दियो [ शंकर ने अपने ललाट के पसीने की बूंद से गजराज को उत्पन्न किया-छोर्नले ]। उसने राक्षस समूह की गंजन कर उमा के हृदय को रंजित किया (प्रसन्न किया ) और उन्होंने कृपालु होकर उसे एक सुन्दर हस्तिनी ( हथिनी ) प्रदान की है। इन्हीं ( हाथियों ) के शरीर से इनका कुटुम्ब बढ़ और रेवाट के वन में फैल गयी ।' सामन्तों के नाथ (पृथ्वीराज) से मिल कर दाहिम ( चामंडराय } ने इस कथा का वर्णन किया । | शब्दार्थ-रू० ३–विन्द<विन्दुहि० बँद} ललाटमाथा। पद< सं० प्रस्वेद=पसीना । संकर<सं० शंकर [वि० वि०प० में] । गजरार्जजों का राजा । ऐरापति< सं० ऐरावत=इन्द्रहस्ती। ऐरावत शुक्लवर्ण और चतुर्दन्त विशिष्ट है। समुद्र-मंथन के समय चौदह रत्नों के साथ यह भी निकला था | यह पूर्व दिशा का राज कहा जाता है। इसके अन्य नाम अभ्रमातङ्ग, ऐरावण, अश्वभूवल्लभ, श्वेतहस्ती, मल्लनाग, इन्द्रकुंजर, सदादान, सुदामा, श्वेतकुंजर, जाग्रमी और नामल्ल हैं । इत्युक्त्वा प्रययौ विप्रो देवराजोऽपि तं पुनः ।। आरुह्येरावतं ब्रह्मन् प्रययावमवरावतीम् ।। १-६-३५ विष्णु पुराण । सुरराजं<सं० सुरराज इन्द्र | एक वैदिक देवता जिसकी स्थान अंतरिक्ष है और जो पानी बरसाती है। यह देवताओं का राजा माना जाता है। इसका वहिन ऐरावत और अस्त्र वज्र है। इसकी स्त्री का नाम शचि और सभी का सुधम है, जिसमें देव, गंधर्व और अप्सरा रहती हैं। इसकी नगरी अमरविती और वन नंदन है। उछ:श्रवा इसका घोड़ा और मातलि सारथी है । वृत्र, त्वष्टा, नमुचि, शंबर, पण, बल और विरोचन इसके शत्रु हैं । जयंत (१) ना०——एरपति (२३) ना०—तिह