पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(६)

________________

रू० ५-- चंद कवि ने पृथ्वीराज को उत्तर दिया----] हिमालय के समीप एक बड़ा ऊँचा वट का वृक्ष था जह सौ योजन तक विस्तृत थः । नतंग ने (पहिले तो ) उसकी शाखायें तोड़ीं और फिर मदांध हो उसने दीर्घतय ऋषि की उद्यान उजाड़ डाला ( जिसके फलस्वरूप) हाथी की आकाश गमी गति मंद ( क्षीण ) हो गई और नरों ( मनुष्यों ) ने उसे सवारी के लिये संग्रह कर लिया ।' चंद कवि ने कहा कि हे संभल के राजा ( पृथ्वीराज ) , इस प्रकार सुर गयंद भूमि ( पृथ्वी ) पर रह गया । | शब्दार्थ-रू० ४---च्यारि-चार । पिरिया=(१खन!<१० प्रेक्षण) देखे जाते हैं। वारन=हाथी । पुच्छि=पूछा<सं० पृच्छराए नोट-आव: भद्र, मंद्र या मंद और मृग इन तीन प्रकार के हाथियों का वर्णन मिलता है परन्तु कई कहीं चार से अधिक हाथियों की जातियों का भी उल्लेख है। कॉ=से ।। नरपत्तिय=नरपति ( राजा ) । सुर वाहन=देवताओं की सवारी। किम=किस प्रकार, कैसे । धरतिय हि० धरती<सं० धरित्री=पृथ्वी ।। रू० ५--हेमाचल=[ईम (बर्फ)+अचल] हिमालय पर्वत (जो भारतवर्ष की उत्तरी सीमा पर है।)। उपकंठ=वि० (को०) निकट, समीप } बट=बरगद । वृष< सं० वृक्ष=पेड़ । उतगं=ऊँचा । जोजन <सं० योजन परिमांन < सं० प्रमाण। साघ<शाख (यहाँ 'सा' का बहु वचनांत प्रयोग है)। तस<संतस्थ= उसकी । भंजि<सं० भजन=तोड़ना । मतंर्ग-हाथी । बहुरि=फिर । दुरदर्सं० द्विरद= दो दाँत वाला अर्थात् हाथी । ढाहि = गिराना । आराम == फुलवारी बगीचा, उद्यान, उपचन उ०—“परम रम्य शाम यह जो रामहिं सुख देत ।” रामचरितमानस । घिहि० देखकर 1 कुपिन्कुपित अर्थात् क्रोधित होकर । ताम=तिसको ( अर्थात् उसको } } दीर्घतपा री=(‘री' शब्द सृघि का संकेत बोधक प्रतीत होता है ।) दीर्घतमस् ऋषि एक प्रख्यात ऋत्रि थे । ये चन्द्रवंशी पुरुरुवा के वंशज काशिराज के पुत्र, काश के पौत्र और प्रसिद्ध धन्वंतरि वैद्य के पिता थे (विष्णु पुराण) । 'अनु” के वंशज सूतपस के पुत्र बलि की स्त्री से नियोग करके इन्होंने अंग, बंगु, कलिंग, सुझ और पुण्डू नामक पाँच पुत्र उत्पन्न किये थे ( विष्णु पुराण ४ । १८ । १३ ) । महाभारत, मत्स्य पुराण और वायु पुराण में दीर्घतमस का जन्म वृहस्पति के बड़े भाई उजासि ( या उतथ्य ) और ममता द्वार होना लिखा है । वायु पुराण में हम इनका नाम दीपंतपस भी पढ़ते हैं । ह्योनले महोदय ने यू० पी० जिला फरूखाबाद के कपिल ग्राम के जिन दीर्घतपा ऋषि की उल्लेख अपनी पुस्तक में किया है उन से यहाँ कोई संबंध नहीं समझ पड़ता १० योनले का अनुमान है कि अगले