पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(१९)

________________

( १६ ) प्रस्तुत कवित्त में जिस पत्र का हाल है वह पत्र पृथ्वीराज के सेनापति चामंडराय के भाई ‘चंद-पुंडीर” के पास से आया था जो पृथ्वीराज के सीमांत प्रदेश लाहौर का शासक या क्षत्रप था । अगले १८ वे दोहे से यह बात सर्वथा स्पष्ट हो जाती है। | इस पत्र के विषय में दो सम्मतियाँ और मिली हैं-गुप्त रीति से संतत लाहौर में रहने वाले शहाबुद्दीन के जासूस ने राज़नी को लिख भेजा कि पृथ्वीराज सेना सहित रेवातट पर शिकार खेलने गया है।” रासोसार, 'इ०१०० ।। -The letter was not received from Lahore, but reached the Sultan there and came from Jaychand at Kanauj.” Indian Antiquary. Vol. 111, p. 340.F, S. Growse.]} किंचित् बिचार से पढ़ने पर स्पष्ट हो जावेगा यों कि सम्मतियाँ निराधार हैं। दूत के पत्र का हाल--- <षां ततार मारूफ पाँ, लिये पोन कर सोहि । धर चहुआंनी उप्परै, बजा बजन बाई ।। ॐ० १४ । रू० १४ । साटक श्रोतं भूपये गोरियं बर भर, बजाइ सज्ज़ाइने । । सा सेना चतुरंग बधि उल्लं, सत्तार मारूफयं ।। तुझी सार से उप्परा बसरसी, पल्लानयं पानयं ।। एकं जीव सहाब साहि न नयं, बीयं स्तयं सेनय }} छं० १५१ रू० १५।। नोटः- चंद पुंडीर के दूत द्वारा लाये गये पत्र का हाल ८० १४ से लेकर रू० १७ तक है। ] भावार्थ-रू० १४--:ख तातार मारूफ खाँ ने शाह ( गोरी ) के हाथ से पान लिया है। चौहानों को उखाड़ फेंकने के लिये वायु में बाजे ( युद्ध वाद्य ) बज रहे हैं। रू १५-हे राजन्, सुनिये; देरी के श्रेष्ठ सेनापति तातार मारूफ खाँ ने (ढोल बजाकर सारी तय्यारी कर ली हैं और उसकी चतुरंगिणी सेना हम लोगों पर झपटने के लिये प्रस्तुत है । अापके ऊपर भयंकर आक्रमण करने की आकांक्षा से स्वानों ने अपने घोड़ों पर ज़ीने कस ली हैं [ था आपकी सत्ता (१) नेo----उष्परा बस रसी ।