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नष्ट करने के लिए ख़ान घोड़े दौड़ा रहे हैं । ( सारस= सेना इसलिए सत्ता, राज्य यो बल; उप्परा< उपारना= नष्ट करना ; पल्लनियं<सं० एलायर्न= दौड़ाना, भगाना ) । (केवल } एक साहबशाह ( गोरी ) रहे और कोई न रहे यह कहकर गोरी की सेना उसका स्वागत कर रही है ।। शब्दार्थ-रू० १४----तोतार-मारूक-घां= यह इस युद्ध में शहाबुद्दीन गोरों का प्रधान सेनापति' समझ पड़ता है क्योंकि इस सम्पूर्ण सम्यौ में हम उसे एक प्रतिष्ठित पद और मुख्य-सैन्य-संचालन में पाते हैं। ना० प्र० सं० ( १० रा० ) में इस छ ० के ऊपर के नोट में एक नाम ‘तातार-मारूफ-वाँ के स्थान पर तातार खाँ और मारूफ न्याँ दो नाम पाये जाते हैं जो उचित नहीं समझ पड़ते । दोहे का अर्थ है कि पूर्व-तातार-मारूफ-१ ने शाह के हाथ से पाने की वीड़ा उठाय- प्राचीन समय में यह नियम था कि जब कोई कठिन कार्य आ उपस्थित होता था तो दरबार में पाने का बीड़ा रखकर अपेक्षित कार्य की सूचना दी जाती थी अतएव जो सरदार अपने को उस काम के करने के योग्य देखता वह बीड़ा उठा लेता )--जो प्रथानुसार भी ठीक है अतएव तातार-मारूफ-खाँ एक व्यक्ति है । डॉ० ह्यनले भी एक ही व्यक्ति मानते हैं। दो व्यक्तियों का भ्रम इस शब्द (याँ-तातोर-मारूफ-वाँ) के दोनों ओर ख़ाँ लगाने से हो गया है परन्तु चंद ने रासो के अनेक स्थलों पर एक ही व्यक्ति के लिये इसके अनुरूप प्रयोग किये हैं। अगले साटक छंद से भी तातार-मारूक-ख़ाँ के एक व्यक्ति होने का अभास मिलता है। लिये पांन कर साहि-शाह के हाथ से पान लिया है; (इस भाँति पान का बीड़ा किसी दुष्कर कार्य को सम्पादित करने के लिये ही उठाया जाता था और इस समय चौहान से मोच लेना साधारण बात न थी)। उपरै धरउपार ( उखाड़) देने के लिये । घर चहुअांनी उप्परै=चौहानी को उखाड़ देने के लिए । बज्जा = फेंकने वाले बाजे जैसे तुरही, विगुल, भोंपू आदि ! बज्जन 'बजाते हैं; (यह पंजाबी भाषा का शब्द हैं और यह क्रिया वर्तमान काल, बहुवचन, उत्तम चुघ की है) । वाइ<सं० वायु । बिज्जन बाइ” की भाँति -पोन निसान भी है जिस का प्रयोग रामचरितमानस में देखा जा सकता है ] । | रू.---१५-श्रोत=सुनिये । भूपय= राजन् (संबोधन) । बर-श्रेष्ठ । भरभट (का रूप हैं)= वीर । बज्जाइ=बजाकर। सज्जाइने= सजा लिया है । सा उस ( गरी ) की । सेना चतुरंग बंधि==सेनः चतुरंगिणी वन कर । उलले < ( हिं० क्रिया) उलरनाझपटना | तुज्झी=-तुहारे ऊपर। सार स=सार सहित ( अर्थात् शक्ति पूर्वक )। उप्परा= (१) याक्रमण (२) उखाड़ फेंकना । बस<सं० वश==इच्छा । रसी ( या रसिक )==घोड़ा, हाथी । पल्लानयंजीन