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मुसाफ' को ह्योनले महोदय तसार घाँ' के साथ जोड़ कर एक नाम बना देते हैं परन्तु मुसाफ-तत्तार-घाँ' नाम प्रमाण रहित है। उचित यह है कि दोनों “मुसाफ' से कुराने का ही अर्थ लगाया जाय ]। मरन कित्ति == भरना क्या । तनबांन= रण का बाना (वेश) धारण करके । में मैं । भेजे= नष्ट करके । घर लै’=अधिकृत कर लेगा । निलु विहान= दिन रात==एक दिन रात में= २४ घंटे में दिल्ली = दिल्ली। सरतांनं --- सुलतान री। सुनै = सुनो ( सम्वोधन )। लुथ्थि = लोथे । पार = डालना, गिराना, पार करना । भीर परिहै = करुट पड़ेगा, आक्रमण होगा । दुचित चित्त जिन करहू = शंका मत करो। राज = राजा (पृथ्वीराज) | उथापं=लगा है, संलग्न है। गज्जनेसगजनी के ईश ( शाह गोरी ) । यस्स<आयसु<सं० आदेश=आज्ञा दी । छूय== छूकर । मुसाफ-धर्म पुस्तक कुरान ।। नोट-कंडलिया छंद का लक्षण-.. अह मात्रिक छंद है। इस में छै पद होते है। प्रत्येक पद में २४ मात्रायें होती हैं। पहले दो पदों में १३ और शेष चार में ११ पर यति होती है। एक दोहे के बाद रोला छंद जोड़ने से कुंडलिया होती है। इसमें द्वितीय पद का उत्तरार्ध तृतीय पद का पूर्वार्ध होता है । जो शब्द छंद के श्रारम्भ में होता है वही अन्त में आता है। ‘प्राकृत पैङ्गलम्' में कंडलिया छंद का निम्न लक्षण दिया है दोहा लक्खण पदम पढि कब्बह अद्ध णिरुन्त । कुंडलिअ बुअए मुणह उल्लाले संजुत्त ।। उल्लाले संत जमक सुद्धङ सल हिजङ चउश्रलह सउ मत सुकइ दिढे बंधु कहिज्जइ । बउआलह सत्र मत जासु तण भूसण सौहा। एम कंडितिर जाणहु पढसपडि जह दोहा ।।3, १४६।। श्री भानु' जी ने श्री पिङ्गलाचार्य जी के मन को आधार मान कर अपने "छंदः प्रभाकर' में कुंडलिया का लक्षण इस प्रकार लिखा है--- दोहा' रौला जोरि कै, छै पद चौबिस मत्त । आदि अन्त पद एक सो, कर कंडलिया सत्त ।। रेवातट सम्यौ का कुंडलिया छंद प्राकृत पैङ्गलम्' में दिये लक्षण के अनुरूप है ।।