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( २६ ) जूथ) <सं० यूथ ( परन्तु जूह' का जहाँ' पाठ भी असंभव नहीं है }} मुगन बर= अच्छे जानवर । मिल्लि=मिलते हैं । भीट रू० १८-इधर पृथ्वीराज ने लाहौर के प्रतिनिधि शासक चंद पंडीर को परवाना भेजकर अपने आने का समाचार जता दिया और श्राप कभी छै और कभी श्रठ कोस का मुकाम करता हु पंजाब की सीध में चलने लगा । रासो-सार, पृ० १०० । । इस दोहे में या कोस’ शब्द या उसका पर्यायवाची अन्य कोई शब्द नहीं आया है । और कराइ करि परिवान' को अर्थ ‘कागद ( पत्र ) को प्रमाण मानकर है, न कि ‘परवाना भेजकर' । । रू० १६-जिस घड़ी पृथ्वीराज ने पंजाब की भूमि में पैर रक्खा उसी समय मुसलमानी सेना ने भी वह सीमा पार की ।” रासो-सार, पृष्ठ १०० । "Marching from two opposite directions i, e, east and west, the Chauhan and Sultan met." Growse. [Indian Antiquary. Vol. III, pp. 839-40.] "To meet the host of Gori, he went straight to the Punjab. From both sides, the east and the west, they met, the Chahuvan, and the Sultan,"[Hoernle.p. 11.] उपर्युक्त तीन अर्थ पाठकों के अवलोकनार्थ दिये गये हैं। ह्योनले तथा ग्राउज़ महोदय गौरी और चौहान को अभी मिलाये देते हैं जब कि युद्ध प्रारंभ काल में अभी विलम्व है। परन्तु रासो-सार के लेखक ने बुद्धिमानी का काम किया है, उन्होंने एक ऐसी बात कह दी है जिसकी संभावना भी है। और असंभावना भी । जो कुछ भी हो रू० १६ की पंक्तियों का शब्दार्थ देखते हुए उसका दिया हुआ भावार्थ ही अधिक समुचित है ।। रू. २२---ह्योर्नले महोदय इस रूपक के अंतिम चरण का अर्थ इस प्रकार करते हैं--प्रेवातट पर उसने बाड़े लगा रखे हैं और अनेक अच्छे जानवरों को पकड़ रखा है।” पृथ्वीराज का कहना कि बहुत बड़े शत्रु रूपी मृगों का समूह शिकार करने को मिला। (पृ० रा ० ना० प्र० सं०, पृष्ठ ८८, छंद २२ की टिप्पणी) । इस रूपक का आधार क्या है इसे ऋ० रा के ना० ० सं० के सम्पादक ही समझ सकते हैं।