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(कठिन मोर्चे पर भी) । अबै परंतर जानिबौ = अब भी उनके बराबर जानौ । परंतर= बरावर ।। नोट--इस बात के सुनते ही पज्जून राव, प्रसँग राव खीची, देवराव बगरी श्रादि सामंत बोले कि यह सब मंत्र तंत्र व्यर्थ है । भरत” का बचन है कि वह जीवन अग्नि ज्वाला से झुरसे वृक्ष में लगे हुए पत्ते के समान है, न जाने कब वायु लगते ही इसका पतन हो जाय अतएव इस सुअवसर पर चूकना क्या है जबकि शत्रु साम्हने आ गया है तो उससे लोहा लेना ही अच्छा हैं।” रास-सार, पृbठ १०० } इसे 'सार' को काल्पनिकता के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा सकता । कवित्त कहै राव प्रज्जुन, सार कड्यौ सत्तारिय ।। में दुधिषन वै देस, भरि जइव पर पारिय' ।। में बंध्यो जंगलू , राव चामंड़ सु सुथ्थे । बंभनवास विरास, वीर बडगुज्जर तथ्यं ।। भर विभर सेन चहुआ दल, गोरी दल कित्तक गिना । जानै कि भीम कौरू सुबर जर समूह तरखर किनौ ।। ॐ० २५ । रू० २५॥ | भावार्थ-रू० २५–पज्जून राव ने उत्तर दिया--(इससे पहिले) मैंने तातारियों से बचाकर तुम्हें निकाल लिया था । दक्षिण के यादवों पर मैंने आक्रमण किया। चामंडराय के साथ मैंने उंगलियों को हराया ( और उन्हें अपने आधीन किया ) । बंभनवास से मैंने बड़गूजर को निकाल बाहर किया था मैंने बड़गूजर के साथ बंभनवास में विहार किया ] । चौहान की सेना युद्ध प्रिय वीर सैनिकों की सेना है । गौरी की सेना को तुम क्या समझते हो ? योद्धा भीम कौरवों को अनेक जड़ों वाले एक वृक्ष से जानते थे ।” शब्दार्थ---रू०२५–लार=तारना, त्राण करना | कढ्यौ=निकालना। मैं-मैं । दष्विन<दक्षिण । पारियडाला । वैके या को (अर्थों में रासी में अाया है जैसे—-शोरी | गुज्जर गहिय'; राजन मैं प्ठ्यो सुपर';)। भीर = कष्ट । जद्दव यादव । बंध्यो–बाँधी, पकड़ लिया । जंगलू =जंगलियों (१) ना०—मैं (२) मो०-–परिहरिय (३) न०-ॐ (४) ना०, मो०-- जु सथे (५) ना---तथ्ये (६) मो०-किन्ती (७) ए०--ौरू, कौरू, कौ।।