पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(३९)

________________

| रू० ३४--चौहान नै पत्र पढ़ा-यह पुत्र लाहौर के शासक चंद पुंडीर द्वारा भेजा गया था जो चिनाब नदी के तट पर गोरी का मार्ग रोके खड़ा थर-- कि चंद ( पुंडीर) अपने स्थान से फिरेगा नहीं, उसके शरीर में (मानो) वीरत्व अंकुरित हो गया है जिससे उसके प्राण मुक्ति का भोग भो । | रू० ३५-( पत्र सुनकर ) हिन्दुयों के दल में कोलाहल मच गया, सबने कवच कस लिये, (चारों ओर ) दस सहस्त्र ( अर्थात् अनेकों ) मशालें जल उठीं ( और ) अरि दाह ( अर्थात् शत्रु को कष्ट देने वाले ) निशान (=नगाड़े ) बज उठे। शब्द-रू ३३–नव बज्जी-नौ बजे । घरियार=घड़ियाल । निसा <सं० निशा । अ<सं० अद्ध। वर उत्तरे =भली भाँति उतरी या बीत गई । संपते-अचानक;<सं० संप्राप्त । जग्गिय =जगाया । बिहथ्थे<सं० विहस्त= छेड़छाड़; व्यस्तता । मुर्कि<मुक्ति-रोकना, छोड़ना ।सोहि साही=शहंशाह गोरी ।। उर तग्गिय=हृदय में तागो (=ध्यान दौ) । अg सहस=आठ हज़ार । लष्य = लाख । अहारसु=अठारह । ताजिय<अ० (ताज़ी) = घोड़ा विशेष अरद का । उमै<उभय =दो ! सत्त= सात । महत<अ०_sc= राजभवन । नव बार्जियनव बजे । | रू० ३४-बँन्त्रि= बाँचकर, पढ़कर कागद = पत्र । नै=ने । सह सं० सा = उस, वह । थांन<स्थान । वर-वीरत्व । तन अंकुरै= शरीर में अंकुरित हो गया । मुगतिसं ० मुक्ति । मुगति भोग बनि प्रांन=प्राण मुक्ति का भौग भर्ने । रू० ३५--कूह= कोलाहल (<हिकूक ), चिल्लाहट । कै=कै । सनाह == कवच । कसै-कस लिये । ( ह्योनले महोदय ने करै’ पाठ माना है, और करै सनाह सुनाह' का अर्थ कवच लायो, कवच लाशो', करते हैं, जो संभव है)। चिराक<फा० ।- (चिराग़)=दीपक (यहाँ मशालों से तात्पर्य हैं)। दस सहस= दस सहस्त्र अर्थात् अनेकों । निसांन<फ़ा० =नगाड़े (दे० Plate No. IV) अरि=शनु । दाह - जलाना (यहाँ ‘कष्ट देने से तात्पर्य है)। बाबस्सू नृप मुक्कतें, दूत आई तिहिं बार **सजी सेन गौरी सुबर, उत्तरयौ नदि पार ॥छं० ४० १८० ३६ । पंचा सजि गोरी नृपत्ति, बंधि उतरि नदि पार ।। चंद वीर पुंडीर ने, थट मुके दरबार ॥छं० ४१ । रू० ३७ । । (१) भा०–सुभर ( २ ) ना०-नहिं ( ३ ) ए०-उत्तर यौ नदि पार ( ४ ) मो०-घट सुक्यौ दरबार । ।