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( ४ ) ऋवित्त । षां मारूफ ततार, षान खिलची बर गई। चामर छत्र मुजक, गोल सेना रचि गई। भारि गोरि जंबूर, सुबर कीना गज सारं । नूरी षां हुज्जाब, नूर महमुद सिर भार ।। बञ्जीर घांन गोरी सुभर, षांन पनि हजरति धा । विय सेन सज्जि' हरबल करिय, तहाँ उभौ सजिरत्ति षां ।।०४२॥ रू० ३८१ भावार्थ- रू० ३६-उसी समय बाबस्दू नृप द्वारा (पृथ्वीराज के पास) भेजा हुआ दूत आया और बोला कि योद्धा श्री ने सेना सजाकर(चिनाब) नदी ‘पार कर ली है। | रू० ३७–दूत का वर्णन किं गौरी ने किस प्रकार चिनाब नदी पार की ]--हे नृपति, गोरी ने अपनी सेना को पाँच भागों में बाँटकर नदी पार की और उतरने के बाद बै पाँचों भाग फिर एक में बँध (=. भिल ) गये ! वीर चंद पुंडीर ने अपने साथियों सहित ( गोरी से ) डटकर मोच लेने के लिये ( अपने स्थान से) प्रस्थान किया । रू० ३८–तातार मारूफ खाँ और खिलची खाँ मिल गये । सेना को व्यूह बद्ध किये वे खड़े थे ; उनके ऊपर चॅवर और छत्र था जिसके द्वारा वे पहिचाने जा सकते थे। ( था--विशेष छत्र और चमर सहित वे सेना के गोल बनाये हुए खड़े थे )। हुजाब नूरी खाँ तथा नूर मुहम्मद की बड़ी तोपों, गोलों, छोटी तोपों और हाथियों के विभाग का उत्तरदायित्व सौंपा गया। गौरी के बीर योद्धा वज़ीर खाँ ने और वानरवाना हजरति खाँ ने दूसरी सेना का हरावल सजा दिया। वहीं सजत्ति (= शज़रत) खाँ भी उपस्थित था । शब्दार्थ-रू० ३६----बाबस्सू-गृह पृथ्वीराज के किसी सामंत का नाम जान पड़ता है जो चंद पुंडीर के साथ चिनाव नदी के तट पर गौरी से मोर्चा लेने के लिये खड़ा था। ‘सामंत चार भागों में विभाजित थे उनमें एक भाग का नाम बबस ( =पैदल ) था और “बबस' चौहान वंश की प्रशाखा की एक शाखा के राजपूत हैं” (Rajasthan. Tod, Vol. I, p. 142)। “यह भी संभव है कि ‘बाब्बसू’ चंद पुंडीर द्वारा भेजे हुए दूत का नाम हो-ह्योले । मुक्कतें <मुख ते=ोर से । सुबर=सुभट, श्रेष्ठ योद्धा । नदिः=नदी (चिनाब) । {१) ना०-~-बिय सजिज सेन ।