पृष्ठ:Reva that prithiviraj raso - chandravardai.pdf/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
(४७)
              भुजंगी

जहाँ उत्तरथौ साहि चिन्हाव मोरं । सहाँ सेज गड्यौ ठठुक पुण्डीरं ।। करी अनि साहाब सा बंध गोरी । धके धींगर धींगं धकवै सजोरी ।। छं० ४७ ।। दोऊ दीन दीनं कढी वकि अस्सीं । किधौं मेध में बीज कोटिन्निकसीर । किये सिप्परं कोर ता सेल अगी। किधौं बद्दर कोर नागिने नग्गी ।। छु० ४८ ।। हवर्क जु मेर्छ भ्रमंतं जु छुट्टै।। मनो घेरनी घुम्मि पारेव तुट्टै । उर फुट्टि छरछी बरं छब्बि दासी । मन जाल में भीन अद्धी निकासी ॥ छं० ४६ ।। लटके जुरनं उड़ हंस हल्लै । रस भीजि सुरं चवगन घिल्लै ।। • लगे सीस नेजा अमैं भेज तुभ्यं । भधै बाइसं भात दीपति सथ्य छै ५० । करै मार मार महाबीर धीरं । भये मेघधारा बररुर्षत तीरं ।। परे पंच पुंडीर सा चंद कट्यौ । तबै साहि गोरीस चिन्हाव चढ्यौ ।। छु ५१ । रू०४३ । भावार्थ-रू० ४३--- जहाँ पर गौरी के सेनानायकों ने चिनाब नदी पार की वहीं पुंडीर बरछी गाड़े डटा हुआ था। ग़ोरी सहाब शाह ने हाथियों की सेना तय्यार की [या-सहाव शाह गोरी ने अक्रमण करने वाली सेना ठीक की या सा (= पुंडीर) ने सहाब शौरो को बाँध लेने की आज्ञा दी । (तदुपरांत) धक्का-मुक्की करते गरजते चिल्लाते वे आगे बढ़े। छं० ४७ । । दोनों (हिन्दू और मुसलमानों) ने अपने अपने धर्म का नाम लिया और टेढ़ी तलवारें खींच ती (उस समय ऐसा विदित हुआ कि) मानों बादलों से करोड़ों बिजलियाँ निकल पड़ी हों। सिपर (ढालों) को छेदकर उन बरछियों की नौकेंउनमें उसी प्रकार से घुस गई मानों बादलों में पर्बतों की अनेकों चोटियाँ घुस गई हों ? छं०४८] (१) हा०.अस्सि (२) हा०--निकस्सिं (३) ना०-भेजि वथ्थे (४) ना७-~सध्थे