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उपर्युक्त दी हुई कुंडली के द्वादश स्थानों के फला देश को कहने के लिए इन स्थानों की संज्ञा हुई जो इस प्रकार है : लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम ( ल च स द 3-इनकी केन्द्र संज्ञा है। द्वितीय, पंचम, अष्टम और एकादश–इनकी पणफर संशा है ।। तृतीय, प्रष्टम, नवम और द्वादश--इनकी पोक्तिम संशा है । ( १ ) अष्ट चक्र योगिनी---पृथ्वीराज को पश्चिम् जाना था और योगिनी ( ॐ तिथि के अनुसार विचारी जाती है ) पंचमी तिथि को ज्योतिष के अनुसार दक्षिण दिशा में स्थित थी, अतएव पृथ्वीराज के दाम भाग में पह और काशी नाथ भट्टाचार्य विरचित 'शाध बोध के श्लोक---- योगिनी सुखदा बामे पृष्ठे वांछितदायिनी । दक्षिणे धुनहंत्री च संमुखे प्राणनाशिनी ।। के अनुसार शुभ हुई। ( २ ) भरणी नक्षत्र-भरणी नक्षत्र यात्रा के लिये अशुभ है । यथा--- पूर्वासु बिषु याम्य ज्येष्ठायां रौद्रमौरगे। सशासु गते यात्रा प्राणहानिर्भविष्यति । ११ । ६, टीका ॥ ( यात्री प्रकरण ) मुहुर्त चिन्तामणि' । उस दिन भरणी नक्षत्र का भोग था और मंगलवार था अस्तु दोनों की उग्र (कूर) संज्ञा थी । यथा---- पूर्वाश्रय याम्यमचे उग्रं कुरं कुजस्तथा । तस्मिन्यातानिशाठ्यानि विषशास्त्रादि सिध्यति ।। २ । ४ ॥ (नक्षत्र प्रकरण), मुहूर्त चिंतामणि, रामदैवज्ञ ।। | परन्तु यहाँ युद्धरूपी हनन कार्य था इसीलिए भरणी नक्षत्र शुभ हुआ । यथा--पूर्वी त्रित पित्र-यमुग्राख्थमिदं च पंचकं जाम्यम्, मारणभेदनबन्धनविषहननं पंचभे कार्यम' (वशिष्ठ)--और पृथ्वीराज ने यात्रा की । (३) पंचम स्थान के गुरु---पंचमस्थ गुरु त्रिकोण में थे इसलिए लक्ष दोषों के नाश करने वाले थे। यथा-- त्रिकोणे केन्द्र बा मदनरहिते दोषशतर्क हरेत्सौम्य; शुक्रो द्विगुणमपि लक्ष सुरगुरुः ।।...। ६ । ८६ ।। (विवाह प्रकरण), मुहूर्त चिंतामणि' ।। पंचमस्थ गुरु इसी से शुभ हुए। (४) पंचम स्थान के सूर्य--पंचमस्थ सूर्य सिंह राशि के थे और उस राशि के स्वामी भी थे इसलिए शुभ फल देने वाले थे ।, यथा----‘यौं यौ भवः स्वामी सौम्याभ्याम दृष्टो युक्तोय मेधते--(जातक) ।