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| ( ५ ) अष्टम स्थान के मंगल---इस यात्रा लग्न में मैगल अष्टभ थे और ज्योतिष के अनुसार अशुभ थे । यथा-- | खेटा सर्वे महादुष्टाः अष्टम् स्थानमाश्रिता:'.--(जातक) । परन्तु मंगल वृश्चिक राशि के ये हैं क्योंकि मेष लग्न थी और मेष के वृश्चिक राशि अष्टम पड़ती है | इसलिए उसके स्वामी थे । यथा--** मेष, वृश्चिक भौम:'—(जातक) ; अस्तु अशुभ होते हुए भी शुभ थे । यही विचार करके तक़ालीन ज्योतिषियों ने सहाराज को चढ़ाई करने की अनुमति दी होगी । (६) केन्द्र स्थान में बुध-सूर्य, बुध और शुक्र की गति प्रायः बराबर रहती है। कभी कभी ये परस्पर आगे पीछे हो जाया करते हैं । दी हुई कुंडली के अनुसार बुध कर्क राशि के थे, और कर्क राशि चतुर्थ स्थान में है, जिसकी केन्द्र संज्ञा है, अतएव इस समय बुध का केन्द्र स्थानाभूत होना प्रमाणित हुआ। | (७) हाथ में त्रिशूल चिन्ह---सामुद्रिक शास्त्र के श्लोक---- 'त्रिशूले कर मध्ये तू तेन राजा प्रवर्तते ।। बन्ने धर्मे च दाने च देव द्विज प्रपूजकः }}---ॐ अनुसार शुभ होता है । (८) चक्र चिन्ह---रथ चक्र ध्वजाकारः स च राज्यं लभ नरः ।। सामुद्रिक शास्त्र । इस श्लोक से स्पष्ट है किं चक्र चिन्ह शुभ होता है। (६) उदै कृरह बलियोनले महोदय इससे बली शनि ग्रह का अर्थ लेते हैं परन्तु शनि की शप संज्ञा है । ज्योतिष के अधिौर पर शनि, राहु और केतु पाप ग्रह हैं; सूर्य और मंगल कृर हैं ; बुध, बृहस्पति, शुक्र और चंद्र सौम्य ग्रह हैं, अतएव यहाँ शनि ग्रह” अर्थ लेना समुचित नहीं है। सूर्य और मंगल क्रूर ग्रह हैं, और इन्हीं का उस समय उदय होना सम्भव है। नोट-—ग्राम असन, ज़िला फतेहपुर ( उ० प्र०) के ज्योतिषाचार्य पं० शिवकुमार द्विवेदी शास्त्री से परामर्श करके इस रूपक का अर्थ निर्णय किया गया है। प्राय: प्रत्येक विषय विवादग्रस्त है परन्तु बहुमत मान्य होता है । जहाँ तक संभव हो सका है इस कवित्त के अर्थों का प्रतिपादन ज्योतिष ग्रंथों की सहायता से किया गया है और प्रकरणानुसार उनको उल्लेख भी कर दिया गया है। ज्यौतिष चक्र राशियों के नाम, नक्षत्रों के नामों की भाँति तारा समूह की आकृति के अनुसार ही रखे गये हैं। बारह राशियाँ ये हैं-मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन ।