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चंद्रमा के मार्ग को २७ बराबर भागों में बाँट दिया गया है जिन्हें नक्षत्र कहते हैं और प्रत्येक भाग में पड़ने वाले तारा पुंजों की प्रकृति के अनुसार उनका नामकरण किया गया है। उनकी संख्या २७ हैं तथा नाम इस प्रकार हैं---**श्रविष्ठा या धनिष्ठा, शतभिशकू , पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्र पद, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी या ब्राह्मी, मृगशिरा, श्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्व फलगुनी, उत्तर फलगुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा या राधा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाधाढ़, उत्तराषाढ़, और श्रवणबृहत् संहिता, वाराह मिहिर। चंद्रमा प्राय: २७ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा कर लेता है । खगोल में यह भ्रमण पथ इन्हीं तारों के बीच से होकर निकलता और सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर नक्षत्र-चक्र कहलाता है । । नक्षत्र ( Stars ) ग्रहों ( Planets ) से भिन्न होते हैं। नक्षत्रों की अपेक्षिक ( Relative ) गति नगण्य होती है। ग्रहों की संख्या हिंदू ज्योतिष के अनुसार ६ है, यथा--सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु (तथा पाश्चात्य ज्योतिष के अनुसार १० है, यथा----सूर्य, मंगल, बुध गुरु, शुक्र, शनि, पृथ्वी, यूरेनस, नेपच्यून और प्लूटो) ।। नोट--रू० ४७ का ह्योर्नले महोदय के अनुसार यह अर्थ है “Tuesday the fifth was the day on which Prithviraj gave battle; to Rahu and Ketu he prayed, to avert evil and obtain luck, The eight Chakra Joginis and the position of Bharani are auspicious for the battle, (s) also ) are Jupiter and Sol both in the fifth compartment, (but) Mars in the eighth is inauspicious for the king. In the central part Mercury is good for fighting for one who bears the marks of the trident and discus in his hand. Taking advantage of this auspicious hour, the king set forth at the rise of the powerful Saturn." BÝT NEFT HETT # Indian Antiquary. Vol. III, p. 341 में डॉ०ह्योनले के इस अर्थ की अलोचना करते हुए अपना अर्थ इस प्रकार लिखा है... "The company of the eight Yoginis is auspiciously placed and auspicious for battle is the Nakshatra Bharni. The conjunction of Jupiter and the Sun in the fifth house and Mars in the eighth house are also auspicious