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रू० ५२--तूफ़ान उठा और चारों ओर अँधेरा छा गया ( मानो ) बादलों ने सूर्य को ढक लिया हो। [ इसे क्या कहा जाय ] यह मंगल सूचक है। अथवा अमंगल सूचक १ ८० ५३–सुलतान के दल वालों ने लोहे के चमकते हुए बाणों को देखकर अनुमान किया कि क्या गरदिश ने चक्कर खाया है जो रात को अया जानकर तारे निकल आये हैं। रू. ५४--रण बाँकुरों की ध्वजा को वायु में उड़ते देख कवि को यह जान पड़ा कि मानों वह तारों और चंद्र देव के पैरों में लग गई है। | रू० ५५---असंख्य शंख बजते ही अनेक सुरंग वाजे बज उठे जिससे नगाड़ों का शब्द भी दबे गया और कानों को कुछ न सुनाई दियो । ८० ५६---दोनों ओर की सेनाएँ कर्तव्य के घाट [ अर्थात् युद्ध-क्षेत्र ] पर काले धन घोर वादलों के समान अ मिलीं । चित्रांग [ = चित्तौर ] रावर [ = राजा ] ( समर सिंह ) के बिना ( शत्रु सेना को ) दह वाट [= दस बाट दस मार्गअर्थात् तितर बितर 1 कौन कर सकता है । [ या-- चित्रांग के रावर के बिना कौंन मार्ग दिखा सकता है या कौन सेना का संचालन कर सकता है ? शब्दार्थ-७० ५.१-क्रय = क्रय करना (= खरीदना) । गाह<फा० ४==जगह । बाषांन=वर्णन। इक=एक । मुग तै<सं० मुक्ति-आवागमन के बंधन से छूटना ! करवति<सं० करपत्र= अारा । पाघांन<पात्राण= पत्थर । ९० ५२----बाइ बीष=विषैली वायु, तूफान, अंधड़ । धुंधर=अँधेरे । परिव=पड़ गया। बद्दर छाये भान-बादलों ने सूर्य को ढक लिया । कुन–क्या। मंगल-=( १ ) शुभ घड़ी ( २ ) युद्ध कारक अशुभ मंगल ग्रह। अन=या । रू० ५३—दिष्ट देषि=दृश्य देखकर; दृष्टि से देखकर । लोहा चक्कत वांन=लोहे के चमकते हुए बाण' । षहक फेरि असमान उलट गया, गरदिश ने चक्कर खाया । उइगन=तारे । निसि अग्रिम फिरि जानरात को फिर आया जानकर है। | रू० ५४-धजा <ध्वजा=झंडा, पताका । बाइ<वायु । अंकुर<वक्र टेही; [ ‘बंकुर' को अर्थ रण बाँकुरे भी हो सकता है । ] । इह==यह । छबि - यही ध्वजा की ऊँचाई यी विशालता से तात्पर्य है । निरिन्दनरेन्द्र । विय =दौ । पाइपैर ; “पाकर' अर्थ भी संभव है।