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इंदापूर पहली जिल्द, पृ० १५३-५४] । रावल समर सिंह के समय के आठ लेखौ. से यह निश्चित हैं कि वि० सं० १३५८(ई० स० १३०१) अर्थात् पृथ्वीराज के मारे जाने से १०६ वर्ष पीछे तक वह (रबल समर सिंह) जीवित था” [राजपूताना का इतिहास, ० ही० ओझा, जिल्द ३, भाग १, पृ० ५१-५२ ]। समतसी तथा समरसी के नामों में थोड़ा सा ही अंतर है इसलिये संभव है कि पृथ्वीराज रासो के कर्ता ने समतसी को समरसी मान लिया हो। बागड़ का राज्य छूट जाने के पश्चात् सामंतसिंह कहाँ गया इसका पता नहीं चलता। यदि वह पृथ्वीराज का बहनोई माना जाय, तो बागड़ का राज्य छूट जाने पर संभव है कि वह अपने साले पृथ्वीराज के पास चला गया हो और शहाबुद्दीन गौरी के साथ की पृथ्वीराज की लड़ाई में लड़ती हुश्री मारा गया हो । राज्य का इतिहास, गौ० ही० ओ०, पृष्ठ ५३] । अतएव रस में आये हुए समर सिंह को सामंतसिंह ही मानना उचित होगा । मनमथसं० मन्मथ == कामदेव का एक नाम । स्त्री पुरुष संयोग की प्रेरणा करने वाला एक पौराणिक देवता जिसकी स्त्री रति, साथी बसंत, वाहन कोकिल, अस्त्र फूलों का धनुषबाण है। उसकी वजी पर मछली का चिन्ह है। कहते हैं कि जब सती का स्वर्गवास हो गया तब शिव जी ने यह विचार कर कि अब विवाह न करेंगे समाधि लगाई। इसी बीच तारकासुर ने घोर तप कर के यह वर माँगा कि मेरी मृत्यु शिव के पुत्र से हो और देवताओं को सताना प्रारम्भ किया। इस दुःख से दुखित होकर देवताओं ने कामदेव से शिव को समाधि भंग करने के लिए कहा । उसने शिव जी की समाधि भंग करने के लिये अपने बाणों को चलाया । इस पर शिव जी ने कोपकर उसे भस्म कर डाला । उसकी स्त्री रति इस पर रोने और विलाप करने लगी । शिव जी ने प्रसन्न होकर कहा कि कामदेव अव से बिना शरीर के रहेगा और द्वारिका में कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के घर उसका जन्म होगा | प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध कामदेव के अवतार कहे गये हैं। चंद बरदाई ने समरसिंह' की कामदेव से उपमा दी है। जिससे अनुमान होता है कि चित्रांगी रात्ररे वीर तो था ही बड़ा स्वरूपवान भी था । अनी =सेना । मुष्य < मुख । अनी मुश्य = सेना के मुख पर अर्थात् सेना के अागे । पिष्ठौ = देवा गया। सबल बल सहित अर्थात् अपने सामैतगणों के साथ । नोटः---**पास के प्रबल दल बद्दल रूपी यवन सेना को देखते ही प्रचंड पवन रूपी मेवाड़ पति रावल समरसिंह जी ने उस पर इस वेग से आक्रमण किया कि वे छिन्न भिन्न होने लगे ।” रास-सार, पृष्ठ १०१ ।।