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| कवित्व

रविर उप्पर धाइ परयौ, पाँवार जैत षिझि ।। तिहि उप्पर चामंड, करयो हुस्सेन पनि सजि ।।। धक्काई धक्काइ, दोउ१ हरबल बल मंझे ।। पच्छ सेन आहुट्टि, अनी बंधी आलुज्झे ।। गजराज बिय सु सुरतांन दल, दह चतुरंग बरः बीर बर।। धनि धार धार धारह धनी, बर्र भट्टी उपारि करि }} छं०७०।०५८ । भावार्थ- रू ५८--रावर के पीछे क्रोधित जैत प्रभार था और उसके पीचे चामंडराय और हुसेन खाँ थे । ये दोनों ( चामंड अौर हुसेन ) हरावल ( सेना }) के बीच में थे । सेना के पिछले भाग से आकर इन्होंने अनी (= देना के सिपाहियों की पंक्ति ) को बाँधा और (युद्ध में) उलझ गये । दो हाथियों पर चढ़कर इन श्रेष्ठ बीरों ने सुलतान की चतुरंगिणी सेना को अच्छी तरह व्याकुल कर दिया । (और) अनेक तलवारों के बाँधने वाले स्वनामधन्य धार देश के अधिपति तथा श्रेष्ठ भट्टी ने उन्हें उखाड़ फेंका।।

शव्दार्थ-८० ५८--रावर = चित्रगी राबर समरसिंह । उप्पर धाइ पथौ= ऊपर (पीछे) दौड़ता हुआ । पाँवार जैत-जैतसिंह प्रसार । षिझि =क्रोधित । तिहि उप्पर = उसके पीछे । चामंड=चामंडराय दाहिम । सजि= सजा हुन्छ । हुसेन घांन= हुसेन खाँ—यह मोर हुसेन का पुत्र जान पड़ता है। और संभव है कि उसी वश का कोई अन्य संबन्धी हो । जैसा रासो सम्यौ ६ . में हम पढ़ते हैं कि मीर हुसेन औरी के भारत पर आक्रमणों का कारण था । मीर हुसेन, शाह हुसेन या हुसेन वाँ एक वीर योद्धा थी जो शो का चचज़ाद भाई थी और उसी (ौरी) के दरबार में रहता था | चित्ररेखा जिसका वर्णनरास सम्यौ ११ में है, सुलतान की रूपवती प्रेयसी वेश्या थी उसकी अशु पंद्रह वर्ष की थी और वह गान विद्या में निपुण थी। शाह उसको बहुत चाहता था । हुसेन भी चित्ररेखा से प्रेम करने लगा और वह भी हुसेन को चाहने लगी । शाह को यह खबर लगी तो उसने हुसेन को बहुत बुरा भला कहा परन्तु इसेन यौर चित्ररेखा को मेम कम न हो सका । अंत में हुसेन इत्र को ज़िनी छोड़ देनी पड़ी। वह अपना धन, परिवार और चित्ररेखा को लेकर भाग निकले। और पृथ्वीराज की शरण में आया । पृथ्वीराज ने कुछ पशोपेश के बाद उसे अभयदान दिया । यह सुनकर शौरी आग बबूला हो गया और चौहान पर (१) ना०---दोई।