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डतंमंग तुट्टे परै औन धारी । मनो दंड सुक्की अगी बाइ बारी ।। नचे कंध बंधे ह* सीस भारी। तहाँ जोगमाया जकी सी विचारी || छं० ७५ ।। चढ़ी सांग लग्गी बझी धार धार । वहां सेन ने करै मार मार ।। नचै रंग भैरू गहै ताल बरं । सुरंग अच्छी बंधि नारद तीरं ।। ॐ० ७६ । इसी जुद्ध बद्ध उबद्ध उ भने । भिरे गोरियं सेन अरु चाहुनि ॥ केरै कुंडली तेग वग्गी प्रमानं । मन मंडली स तं कन्ह ठानं३ ।। ॐः ७७ ।। फुटी अवध माहि सामंत सूरं । वजै गोर ओरं मनो बज्ज झूरं ।।। लगै धार धार तिनै धरह तु । दुइँ कुम्भ भग्गै करके अहुई ।। ॐ० ७८ ।। फुदी श्रोन भोमं अपी४ बिंब राजं ।। मनो मेघ बुड्ढे प्रथम्भी५ समाजं ।। पराक्रम्म राजं प्रथीपति रूट्यौ । ने रुधि गोरी समं जैगर जुट्यौ ।। छं० ७६} रू ६१ ।। तेज छुट्टि गोरी सुवर, दिय धीरज तत्तार। मो उपभै” सुरतान को, भीर* परीइ न बार ।। छं०६०। रू० ६२ भावार्थ-रू० ७३--- |गोरी चौहान से भिड़ने की इच्छा से बढ़ा । उसके साथ पाँच कोड़ी धनुर्धर थे। साँभर के सैनिकों के आयुधों की खनखनाहट आधे कोस तक जाती थी और इस ( आधे कोस ) के श्राधे कोस और आगे नगाड़े सुन पड़ते थे । ४० ७३ ।। ( १ ) मो 9-जुकीय विचारी ( २ ) ए० के०—पमानी ( ३ ) नावाने (४) कृ० ए०-अप ; ना---अपं (५) ना०प्रथीम (६) ना०---सह (७) ना-भै (4) ए०भरी ।।