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चँवर । हीति=सूर्य किरण । साई = छाया । हले= हिलते हैं । छत्र पतं= पीले छत्र । वले <फो० ८ =अच्छा ; बोले । थार<फा०,५=मित्र । यार घाई यार घाव करो । हक्क=बुलाना । पचारं<प्रचारना=ललकारना । हत्के पचार= उत्साह से चिल्लाना । घले = डालकर | बथ्थ <सं० वस्ति - कटि ! अवारअल्बाढ़ा । उतं = उस ओर । मंग= माँग, सर । उतमंग ( डिं० )<सं० उत्तमाङ्ग = शीर्ष, सिर, मस्तक; ( उतनँगि किरिं अम्बरि आधाअधि माँग समारि कुमारमग । ५ । वेलि क्रिसन रुकमणी री )। तु-टूटता है। अगी बाइ = अगि जल रही हो । बंधे सीस = कटे हुए सर। भारी हर्के जोर से चिल्लाते हैं। केंध - कंधे, यहाँ कवं ६, धड़। जकी = स्तब्द्ध , स्तम्भित ।। जोगमाया योगायो दाई जो योगिनियों के साथ युद्ध भूमि में घूमने वाली कही जाती हैं ( वि० वि० प० में देखिये )। साँग= एक प्रकार का शस्त्र [ ३० Plate No. III ] । वजी धार धारं = तलवार से तलवार बजी, (धड़बड़ा कर घुस गई–त्योर्नले) । मार मार मारो मारो । भैरू [<भैरव]शिव के एक प्रकार के गण जो उन्हीं के अवतार माने जाते हैं। पुराणानुसार जिस समय अंधक राक्षस के साथ शिव की युद्ध हुआ था, उस समय अंधक की गदा से शिब का सिर चार टुकड़े हो गया था और उसमें से लहू की धारा बहने लगी थी ! उसी धारा से पाँच भैरवों की उत्पत्ति हुई थी। तांत्रिकों के अनुसार और कुछ पुराणों के अनुसार भी भैरवों की संख्या साधारणत: श्री मानी जाती है जिनके नानों के संबंध में कुछ भतभेद है। कुछ के मत से महा भैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुरु भैरव, काल भैरव, क्रोध भैरव ग्रसितांग भैरव, ताम्रचूड़ और चंद्रचूड़ तथा कुछ के मन से असितांग, रुरु, चंद, क्रोध, उन्मत्त, कपाल, भीषण और संहार से आठ भैरव हैं। तांत्रिक लोग भैरवों की विशेष रूप से उपासना करते हैं । गहैं ताल वीरंगण ताल दे रहे हैं । सुरंग = सुन्दर । अच्छरी <अप्सरा स्वर्ग को नर्तकी । इंद्र की सभा में नृत्य करने वाली देवांगना परियाँ जो समुद्र मंथन काल में समुद्र से निकलीं थीं और इंद्र को मिली थी ( विष्णु पुराण----१।६,१९६ । नारद देवर्षि का नाम जो ब्रह्मा के मानस पुत्र कहे जाते हैं (वि० वि० प० में) । तीर =समीप | बेद्ध-बँधकर, लगकर } उद्धेउ<सं० उपातिक>प्रा० अप उबधिौ । [ या----उमद्धेउ<सं० अपवाधितक-प्रा० अ५० बधियौ । उबल्लेउ भानं= सूर्य अस्त' होते हैं । कंडली= कंडलाकार } वग्ग वर्गी सैनिक (Growse) । मंडली रास-रास मंडल । कन्ह-कृष्ण । वानं = ठानी हो । फुठी-फूटी, फूटनी । माहि<सं० मध्य=में । बजै गोर और = गोरी की