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( ८० ) नोट---मोतीदाभ छंद का लक्षण---- यह वाणिक छंद है। इसके प्रत्येक छंद में चार जगण होते हैं। मोतिप्रदान (१) “प्राकृत पैङ्गलम्' में मौक्तिकदान | >


भौतियदाम मोतीदाम=मोतियों की माला] छंद वर्णवृत्त के अंतर्गत माना गया है और इसका लक्षण इस प्रकार कहा गया हैं---

पयो चारि पसिद्ध ताम ति तेरह मराई भोत्तिय दाम् । यो पुनहि हारु श दिज्जइ अंत बिहू सय अग्गल छपण मत् ।। II, १३ ३ ।। ( अर्थात् चार पयोधर बाला, तेरह मात्राश्नों का मोतीदाम छंद होता है। प्रत्येक चरण के आदि अंत में लघु रहते हैं । १६ चरणों के इस छंद में कुल २५६ मात्रायें होती हैं । ) (२) रूप-दीप-पिंगल में इसका निम्न लक्षण दिया है... “कलीं मधि च्यार जन्न बनाय करो पिए मत से घोडश पाय । बतावत शेस सुनो शुभ नाम कहावते छंद सु मोतिपदाम । (३) भानु जी ने अपने छंदः प्रभाकर' में इस छंद को चार जगण (ISI) वाली मात्र कहकर समाप्त कर दिया है ।। छंद रसावला बोल पुच्चै धनं । स्वामि जंचे मनं । रोस लग्गे तनं । सिंह मर्दभने । छं० ८८ । छोह मोहं विनं १ दांन छुट्टे ननं ।। नाम राजं घनं । ध्र में सातुकर्न ।। ॐ० ६६. मेच्छ बाह् बिर्न । रत्त कंधे न नं १ ढल्ल जा ढानं । जीव ता सा हनं ।। ॐ० ६० । बांन जो संवदं । पंषि जा बंधन ! श्याम लेतं अनी । पीत रस घनी । छं० ६१ । मृह मच्ची ध। । रोस देती फिरी ।। फौज मिट्टी पुनं । सूर उपभे धनं ।। छं० १२ । (१) नर -- मर्द (२) ना) - जम्भे ।